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________________ श्रावकाचार "सचित्ताहारे, सचित्तपडिबद्धाहारे, अप्पउलिओसहिभक्खणया, दुप्पउलिओसहिभक्खणया, तुच्छोसहिभक्खणया" अर्थात् सचित्तवस्तु खाना, सचित्त के साथ सटी हुई वस्तु खाना, कच्ची वनस्पति खाना, पूरी न पकी हुई वनस्पति खाना।' रत्नकरण्डकश्रावकाचार में विषयरूप के सेवन से उपेक्षा नहीं करना, पूर्व में भोगे गये विषयों का बार-बार स्मरण करना, वर्तमान विषय में अति लोलुपता रखना, भविष्य में विषय सेवन को अति तृष्णा रखना, नियतकाल में भोगों को अधिक भोगना इस व्रत के पांच अतिचार माने हैं। तत्त्वार्थसूत्र, पुरुषार्थसिद्धयुपाय एवं अमितगतिश्रावकाचार में सचित्त आहार, सचित्तसम्बन्धआहार, सचित्त समिश्र आहार, इन्द्रियों को मंद करने वाली वस्तु, ठोक रीति से नहीं पके हुए भोजन को करना, ये पाँच अतिचार माने हैं । १. सचित्तआहार-श्रावकज्ञप्तिटीका में कन्दमूलादि जो चेतना सहित होते हैं, उसे सचित्त आहार कहा है। सर्वार्थसिद्धि और लाटी संहिता में भी यही स्वरूप प्रतिपादित किया है।" २. सचित्तप्रतिबद्धआहार-श्रावकप्रज्ञप्तिटीका, लाटीसंहिता, सर्वार्थसिद्धि १. क. "उवभोग परिभोगे दुविहे पण्णत्ते तंजहा-भोयणओ य कम्मओ य तत्थणं भोयणओ समणोवासएणं पंच अइयारा ।। -उवासगदसाओ, १/५१ ख. श्रावकप्रज्ञप्ति, २८६ २. "विषयविषतोऽनुपेक्षाऽनुस्मृतिरतिलौल्यमतितृषानुभवौ । भोगोपभोग परिमाव्यतिक्रमाः पञ्च कथ्यन्ते ।। -रत्नकरण्डकश्रावकाचार, ३/९० ३. क. तत्त्वार्थसूत्र, ७/३५ ख. पुरुषार्थसिद्धयुपाय, १९३ ___ ग. अमितगतिश्रावकाचार, ७/१३ ४. "सचित्ताहारं खलु सचेतनं मूल कन्दादिकम्-"श्रावकप्रज्ञप्तिटीका, २८६ ५. क. सर्वार्थसिद्धि, ७/३५ ख. लाटीसंहिता, ५/२१४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002128
Book TitleUpasakdashanga aur uska Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhash Kothari
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1988
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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