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उपासकदशांग : एक परिशीलन
स्वीकृत है ।' डॉ० दयानन्द भार्गव ने अपनी पुस्तक में कुए या मकान के तहखाने में जाने की स्वीकृत सीमा के उल्लंघन को अधोदिशाप्रमाणातिक्रम
कहा है।
३. तिर्यदिशायथापरिमाण-अतिक्रमण-सर्वार्थसिद्धि, तत्त्वार्थश्लोकवातिक तथा चारित्रसार में भूमिगत मिल तथा पर्वत की गुफा आदि में प्रवेश करके दिग्वत की सीमा का उल्लंघन करना तिर्यक्प्रमाणातिक्रम कहा है। डॉ० दयानन्द भार्गव ने किसी यात्रा में दिशा की सीमा का उल्लंघन इस अतिचार में गिना है।
४. क्षेत्रवृद्धि-उपासकदशांगसूत्र टीका में आचार्य अभयदेव ने उदाहरण सहित बताया है कि दो विभिन्न दिशाओं की, जो मर्यादा की है, उसमें एक दिशा से दूसरी दिशा में क्षेत्र सीमा बढ़ाकर परिवर्तन करना क्षेत्रवृद्धि है।५ श्रावकप्रज्ञप्तिटीका में स्वीकृत क्षेत्र के बढ़ा लेने को क्षेत्रवद्धि व हा है।' चारित्रसार में पहले दिशाओं की योजन आदि के द्वारा जो मर्यादा की है उसमें पुनः लोभवश उससे अधिक की आकांक्षा रखना क्षेत्रवृद्धि माना है। १. क. चारित्रसार (श्रावकाचार संग्रह) पृष्ठ २४२
ख. तत्त्वार्थवार्तिक, ७/३/३ २. भार्गव, दयानंन्द, जैन इथिक्स, पृष्ठ १२६ ३. क. "बिल प्रवेशा देस्तिर्यगतिक्रम"- सर्वार्थसिद्धि ७/३०
ख. तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक, ७३० ग. "भूमि बिलगिरिदरी प्रवेशादिस्तियंगतिक्रम"--चारित्रसार, पृष्ठ ८ ४. भार्गव, दयानंद, जैन इथिक्स, पेज १२६ ५. “एकतो योजन शतपरिमाण मभिगृहीतमन्यतो दस योजनान्यभिगृहीतानि, ततश्च
यस्यां दिशि दस योजनानि तस्यां दिशि समुत्पन्ने कार्ये योजनशतमध्यादपनीयान्यानि दस योजनानि तत्रैव स्वबुद्धया प्रक्षिपति संवर्धयत्येकत इत्यर्थः। अयं चातिचारो व्रत सापेक्षत्वादवसेयः"
-उपासकदशांगसूत्रटीका-अभयदेव, पृष्ठ ३६ ६. श्रावकप्रज्ञप्ति टोका, पृष्ठ १६७ ।। ७. चारित्रसार ( श्रावकाचार संग्रह ) पृष्ठ २४३
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