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________________ श्रावकाचार १२७ उपासक दशांग में वर्णित दिग्व्रत के पाँच अतिचारों का खुलासा इस प्रकार है : - १. ऊर्ध्व दिशापरिमाणअतिक्रमण उपासक दशांगसूत्रटीका में आचार्य अभयदेव ने - "उदिसिपमाणातिक्क मे, उड्ढदिसाइक्कमे" उक्त दोनों शब्दों का सामान्य अर्थ ऊर्ध्व दिशा को मर्यादा का उल्लं - 'घन करना कहा है।' श्रावत्रज्ञप्तिटीका में ऊर्ध्वदिशा में पर्वत आदि के ऊपर जितने कोस तक जाने का प्रमाण स्वीकृत किया है, उसका उल्लंघन करना प्रथम ऊर्ध्वदिशातिक्रम है । योगशास्त्र स्वोपज्ञटीका में भी ऊंचे पर्वत, वृक्ष, शिखर पर जाने के नियम का उल्लंघन करने को यह अतिचार कहा है । २. अधोदिशायथापरिमाणअतिक्रमण - सर्वार्थसिद्धि में कूप एवं बावडी आदि में नीचे उतरने की स्वीकृत सीमा के उल्लंघन को अधोदिशायथापरिमाण कहा है | चारित्रसार, तत्त्वार्थवार्तिक आदि में भी यही स्वरूप ख. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र, अणुव्रत, ६ ग. तत्त्वार्थसूत्र ७/२५ घ. रत्नकरण्डकश्रावकाचार, ४/७३ ङ. श्रावकप्रज्ञप्ति, २८३ च. पुरुषार्थसिद्धयुपाय, १८८ छ. चारित्रसार (श्रावकाचार संग्रह ) पृष्ठ २४२ ज. योगशास्त्र, ३ / ९६ झ. अमितगतिश्रावकाचार, ७/८ a. सागारधर्मामृत, ५/५ १. उपासक दशांगसूत्र टीका - अभयदेव, पृष्ठ ३६ २. श्रावकप्रज्ञप्ति टीका, २८३, पृष्ठ १६७ ३. " तथा ऊर्ध्व पर्वत - तरु शिखरादैः, तस्य व्यतिक्रमः " योऽसौभागो नियमितः प्रदेशः - योगशास्त्र स्वोपज्ञविवरणिका, ३/९७ ४. " कूपावतरणदेर हो - ऽतिक्रम " - सर्वार्थसिद्धि, ७/३० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002128
Book TitleUpasakdashanga aur uska Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhash Kothari
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1988
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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