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________________ १२२ उपासकदशांग : एक परिशीलन तात्पर्य गुणव्रत एवं शिक्षाव्रत से है । दोनों के संयुक्त रूप को शीलव्रत को अभिधा प्रदान की गई है । संख्या को दृष्टि से गुणव्रत तीन और शिक्षानत चार माने गये हैं। उपासकदशांगसूत्र में गुणवतों और शिक्षानतों को संयुक्त रूप से सात शिक्षाव्रत कहा है।' उपासकदशांगटीका में व्रतों को सहायता पहँचाने वाले को गुणव्रत की संज्ञा प्रदान की गई है एवं परमपद को प्राप्त करने की कारणभूत क्रिया को शिक्षा और उसके लिए प्रधानव्रत को शिक्षाव्रत मान लिया है, जिनके क्रमशः तीन और चार भेद किये हैं। यहाँ यह विवादास्पद कथन करने का उद्देश्य स्पष्ट नहीं हो पाया है। इन सातों व्रतों के स्वरूप-वर्णन में भी उपासकदशांगसूत्र में भोगोपभोग परिमाणवत तथा अनर्थदण्ड का ही वर्णन किया गया है, शेष व्रतों के लिए कोई संकेत नहीं दिया गया है। केवल उनके अतिचारों के वर्णन करने से इनके अस्तित्व का पता चलता है। वैसे गुणवतों एवं शिक्षाव्रतों के नामों और उनके क्रमों में पर्याप्त अन्तर प्रतीत होता है । किसी ने उसको गुणवत माना है तो उसी को किसी ने शिक्षाव्रत माना है। तीन गुणवतों एवं चार शिक्षाव्रतों में दिग्वत तथा अनर्थदण्ड को गुणव्रत एवं अतिथिसंविभाग को शिक्षाव्रत सभी ग्रन्थकारों द्वारा मान्य है। सामायिक और प्रोषधोपवास व्रत को 'वसुनन्दिश्रावकाचार' को छोड़कर सबने शिक्षाव्रतों में सम्मिलित किया है। व्रतों की विभिन्न शाखाओं में देशवत, भोगोपभोगपरिमाणव्रत एवं सल्लेखना के बारे में पर्याप्त मतभेद रहा है । आचार्य कुन्दकुन्द ने 'चारित्रपाहुड' में भोगोपभोगपरिमाण को गुणव्रत और सल्लेखना को शिक्षाव्रत १. "अहं णं देवाणुप्पियाणं पंचाणुव्वइयं सत्त सिक्खावइयं दुवालसविहं गिहि धम्म पडिवज्जिसामि" -उवासगदसाओ, १/१२ २. क. "व्रतान्तरपरिपालनेन साधकमतानि व्रतानि गुणव्रतान्युच्यन्ते" -उपासकदशांगटीका-मुनि घासीलाल, पृ० २३२ ख. “परमपदप्राप्तिसाघनीभूता क्रिया तस्यै” --उपासकदशांगटीका-मुनि घासीलाल, पृ० २४४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002128
Book TitleUpasakdashanga aur uska Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhash Kothari
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1988
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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