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________________ श्रावकाचार १२३ माना है ।' आचार्य उमास्वाति ने 'तत्त्वार्थसूत्र' में देशव्रत को गुणव्रत एवं भोगोपभोगपरिमाण को शिक्षाव्रतों में स्थान दिया है। वैसे इन्होंने सभी को व्रत ही कहा है । 'रत्नकरण्डक श्रावकाचार' में दिग्व्रत, अनर्थदण्ड और भोगोपभोगपरिमाण को गुणव्रत तथा देशावकाशिक, सामायिक, प्रोषधोपवास, वैयावृत्य को शिक्षाव्रत कहा है। कार्तिकेयानुप्रेक्षा में रत्नकरण्डकश्रावकाचार का अनुसरण कर देशावकाशिक व्रत के क्रम को पहले की जगह चौथा स्थान दिया है । आचार्य वसुनन्दि ने अपने श्रावकाचार में भोगविरति तथा उपभोगविरति दोनों को अलग-अलग कर शिक्षाव्रतों में स्थान दिया है । जहाँ तक सल्लेखना का प्रश्न है आचार्यकुन्दकुन्द ने चारित्रपाहुड तथा आचार्य वसुनन्दि ने श्रावकाचार में चौथा शिक्षाव्रत माना है । परन्तु उपासकदशांगसूत्र, तत्त्वार्थसूत्र, रत्नकरण्ड श्रावकाचार और कार्तिकेयानुप्रेक्षा में सल्लेखना को व्रतों के बाद वर्णित किया है । ७ इस प्रकार विभिन्न ग्रन्थों में गुणव्रतों और शिक्षाव्रतों का जो क्रम वर्णित है, उसका स्पष्टीकरण आगे के पृष्ठ पर प्रस्तुत प्रारूप ( चार्ट ) से हो जाता है : १. दिसिविदिसिमाण पढमं अणत्थदण्डस्स वज्जणं विदियं । भोगोपभोगपरिमा इयमेव गुणव्वया तिणि ॥ सामाइयं च पढमं विदियं च तहेव पोसहं भणियं । तइयं च अति हिपुज्जं चउत्थ सल्लेहणा अंते ॥ - चारित्रपाहुड ( अष्टपाहुड ), गाथा २५, २६ "दिग्देशानर्थदण्डविरति - सामायिक - प्रोषधोपवासोपभोग- परिभोगपरिमाणातिथि संविभागव्रत सम्पन्नश्व" - तत्त्वार्थ सूत्र, ७/२१ ३. क. दिग्व्रतमनर्थदण्डव्रतं च भोगोपभोगपरिमाणम् । - रत्नकरण्डकश्रावकाचार, ४/१ ख. देशावकाशिकं वा सामायिकं प्रोषधोपवासो वा । वैयावृत्यं शिक्षाव्रतानि चत्वारि शिष्टानि - रत्नकरण्ड श्रावकाचार, ५/१ ४. कार्तिकेयानुप्रेक्षा, ६६ ५. वसुनन्दि-श्रावकाचार, २१७-२१८ ६. क. चारित्रपाहुड, ( अष्टपाहुड ), २५; ख. वसुनन्दिश्रावकाचार, २७१-२७२ ७. क. उवासगदसाओ, १/५४ ख. तत्त्वार्थंसूत्र, ७/२२ Jain Education International ग. रत्नकरण्ड श्रावकाचार, ६ / १२२. घ. कार्तिकेयानुप्रेक्षा, ९१ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002128
Book TitleUpasakdashanga aur uska Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhash Kothari
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1988
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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