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श्रावकाचार
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सीमोल्लंघन ।' रत्नकरण्डकश्रावकाचार में अधिक वाहनों को रखना, अधिक वस्तुओं का संग्रह करना, दूसरों के लाभादिक को देखकर आश्चर्य करना, अधिक लोभ करना, घोड़े आदि को शक्ति से अधिक जोतना, लादना ये पाँच अतिचार माने गये हैं ।२ तत्वार्थसूत्र, पुरुषार्थसिद्धयुपाय, अमितगतिश्रावकाचार एवं सागारधर्मामृत में उपासकदशांग सूत्रानुसार ही अतिचारों का वर्णन है । __उपासकदशांगसूत्र में वर्णित अतिचारों को इस प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है१. खेत्तवत्थुपमाणाइक्कमे
"क्षेत्रवस्तुनः प्रमाणातिक्रमः प्रत्याख्यानकाल गृहीत प्रमाणोल्लंघनमित्यर्थः”
उपासकदशांगटीका में अभयदेव ने खेती आदि के लिए जितनी भूमि रखी है उस प्रमाण का उल्लंघन करना क्षेत्रवस्तुप्रमाणातिक्रम कहा है । चारित्रसार में धान्य की उत्पत्ति के स्थान को क्षेत्र कहा है और रहने के घर को वास्तु बताया है। इनमें ग्रहण किये गये परिमाण से अधिक रखना इस अतिचार का स्वरूप माना है।५ लाटीसंहिता में क्षेत्र रहने के स्थान को कहा है तथा जिसमें धान्य उत्पन्न होता है उसे भी क्षेत्र
१. उत्रासगदसाओ, १/४५ २. "अतिवाहनाति संग्रह विस्मय लोभातिभारवहनानि । परिमित परिग्रहस्य च विक्षेपाः पञ्च लक्षणन्ते ॥
-रत्नकरण्डकश्रावकाचार, ६२ ३ क. तत्त्वार्थसूत्र, ७/२९
ख. पुरुषार्थसिद्धयुपाय, १८७ ग. अमितगतिश्रावकाचार, ७/७
घ. सागारधर्मामुत, ४/६४ ४. उपासकदशांगटीका-अभयदेव, पृष्ठ ३४ ५. "तत्र क्षेत्रं शस्याधिकरणम् वास्तु आगारम्"
-चारित्रसार, पृष्ठ २४१
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