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________________ ११८ उपासकदशांग : एक परिशीलन कहा है और वस्त्र आदि सामान को वास्तु माना है।' इनके परिमाण से ज्यादा परिग्रह रखना अतिचार है। २. धन-धान्यपमाणाइक्कमे "अनाभोगादेरथवा लभ्यमान धान्याद्यभिग्रहं यावत्परगेहएव बंधनबद्धं कृत्वा धारयतीति चारोयमिति" उपासकदशांगटीका में अभयदेव ने सोना-चाँदी आदि धन एवं गेहूँ, चावल आदि धान का जो परिग्रह नियत किया, उसका उल्लंघन धनधान्यप्रमाणातिक्रम है। चारित्रसार में गाय, भैंस आदि पशुओं को धन एवं गेहूँ आदि को धान्य कहा है, इनका परिमाण अतिक्रमण करना धनधान्यपमाणाइक्कमे माना है।३ लाटोसंहिता में भी यही स्वरूप निर्देशित है।४ धवलबिन्दुमूलवृत्ति में गणिम, धरिम, मेय, परिच्छेद आदि चार प्रकार का धन है।" व्रीही, जौ, मसूर, गेहूँ, मूंग, उदड़, तिल, चना, अणुप्रियंग, कोद्रव, मकुष्ठ, शालि, आढकी, मटर, कुलत्थ, शण आदि सत्रह प्रकार का धान्य एवं धन इन दोनों के परिमाण का अतिक्रमण करने को अतिचार माना है । ३. हिरण्णसुवण्णपमाणाइक्कमे-उपासकदशांगसूत्रटीका में आचार्य अभयदेव ने सोने और चाँदी की जितनी मर्यादा निश्चित की है, उसका उल्लंघन करने को हिरण्यसुवर्णप्रमाणातिक्रम माना है। चारित्रसार में १. लाटीसंहिता, ५/९८ से १०० २. उपासकदशांगटीका-अभयदेव, पृष्ठ ३४ ३. 'धनं गवादि, धान्यं व्रीहादि" -चारित्रसार, २४१ ४. लाटीसंहिता, ५/१०३-१०४ ५. "तथा धनं गणिमधरिम-मेय-परिच्छेद्यभेदाच्चतुर्विधम् । तत्र गणिमं पूगफलादि धरिमं गुडादि, मेयं घृतादि, परिच्छेद्यं माणिक्यादि, धान्यं वीहादि । एतत्प्रमाणस्यबन्धनतोऽतिक्रमोऽतिचारो भवति । –धर्मबिन्दुवृत्ति,- मुनिचन्दसूरि, ३/२७ ६. जैन लक्षणावली, पृष्ठ ५६८ ७. उपासकदशांगसूत्रटीका-आचार्य अभयदेव, पृष्ठ ३४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002128
Book TitleUpasakdashanga aur uska Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhash Kothari
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1988
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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