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________________ श्रावकाचार ११३ इस प्रकार श्रावक आचार में गृहस्थ के लिए स्त्री का पूर्ण त्याग न करके सामाजिक मर्यादा निश्चित कर दी, जिससे व्यक्ति अपनी पत्नी से ही संतुष्ट रहे और अन्य विकारों से मुक्त रहे। इस व्रत में होने वाली त्रुटियों को भी वह ध्यान में रखता है ताकि विवेक एवं बुद्धि के द्वारा उन्हें टाल सके । किसी भी ऐसी स्त्री को पैसे देकर अपनी पत्नी की तरह व्यवहार कर उसे अपना बना लेना दोषपूर्ण है। यहाँ तक की अपनी स्त्री अगर अल्पवयस्क है तो उसके साथ भी संभोग नहीं करना चाहिए। साथ ही किसी ऐसी स्त्री को जिसे उसके पति ने छोड़ दिया हो, या वह वेश्या हो, विधवा हो, उसे भी अपना बनाना त्याज्य है। अप्राकृतिक रूप से यानि कामसेवन के सिवाय अन्य अंगों द्वारा कामपूर्ति करना हेय है। अपने पुत्र-पूत्रादि के सिवाय अन्य व्यक्तियों के रागादि भावों से विवाह-संस्कार कराना अतिचार है। काम-भोग की तीव्र भावनाएँ रखना एवं काम उद्दीपन के लिए मादक वस्तुओं का सेवन करना भी अतिचारों में सम्मिलित है । इनसे बचे रहने से ही निर्दोष ब्रह्मचर्य का परिपालन हो सकता है। अपरिग्रह अणुव्रत अपरिग्रह का स्वरूप प्रतिपादन के पूर्व हमें परिग्रह के स्वरूप को समझना आवश्यक है। परिग्रह-स्वरूप-"जहा लाहो तहा लोहो” उत्तराध्ययनसूत्र की यह युक्ति सार्थक ही है कि जैसे-जैसे व्यक्ति की आकांक्षा की पूर्ति होती जाती है वैसे-वैसे उसकी तृष्णा बढ़ती चली जाती है। यही परिग्रह का मूल है । उपासकदशांगसूत्र में अपरिमित इच्छा शक्ति को ही परिग्रह का कारण माना है ।' तत्त्वार्थसूत्र में 'मूर्छा परिग्रहः' कहकर बाह्य वस्तुओं व आन्तरिक ममत्व में जो रागभाव है उसे परिग्रह माना है ।' सर्वार्थसिद्धि में "मंदेति बुद्धिलक्षणः परिग्रहः' कहकर मंद बुद्धियुक्त व्यक्ति के ममत्व को परिग्रह कहा है।३ प्रज्ञापनामलयगिरिवृत्ति में धर्मोपकरण को छोड़कर अन्य को स्वीकार करना एवं धर्मोपकरण में भी ममत्व रखने को -उवासगदसाओ, १/१७ . १. तयाणंतरं च णं इच्छाविहि परिमाणं करेमाणे २. तत्त्वार्थसूत्र, ७/१७ ३. सर्वार्थसिद्धि, ६/१५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002128
Book TitleUpasakdashanga aur uska Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhash Kothari
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1988
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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