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________________ ११२ उपासकदशांग : एक परिशीलन 'पर' शब्द का अर्थ अपनी सन्तान को छोड़कर अन्य से लिया है । कन्यादान के फल की इच्छा एवं स्नेह सम्बन्ध से अन्य के विवाह को कराना परविवाह माना गया है ।" ५. कामभोगतोवाभिलाषा "स्वदार संतोषी हि विशिष्टविरतिमानतेन च तावत्यैव-मंथुन कर्तु - मुचितायावत्यावेदजनित- बोधापशाम्यतिमस्तुवाजीकरणादिभिः” उपासकदशांगटीका में आचार्य अभयदेव ने गृहस्थ में वेद को उपशमन करने के लिए विवाह संस्कार होता है, परन्तु कामासक्त होकर कामजनक औषध का प्रयोग करना और मादक द्रव्य का आसेवन करना कामतीव्राभिलाषा है । चारित्रसार, लाटीसंहिता, सर्वार्थसिद्धि एवं तत्त्वार्थवार्तिक में काम सेवन की बढ़ी हुई परिणति को कामभोगतीव्राभिलाषा कहा है । धवलबिन्दु मूलवृत्ति में काम का अर्थ मैथुन क्रिया से किया है । शब्द और रूप को काम तथा गन्ध, रस और स्पर्श को भोग कहा जाता है। इन पांचों की उत्कृष्ट इच्छा ही कामतीव्राभिषेक कहलाती है । * १. " पर विवाहकरणमीतीह स्वापत्यव्यतिरिक्तमपत्यं पर शब्दे नोच्यते, तस्य कन्याफललिप्सया स्नेहबन्धेन वा विवाहकरणमिति” - श्रावकप्रज्ञप्तिटीका, २७३ २. उपासक दशांगसूत्रटीका - अभयदेव, पृष्ठ ३३ ३. क. कामस्य प्रवृद्धः परिणामः कामतीव्राभिनिवेश: -- सर्वार्थसिद्धि ७/२८ ख. चारित्रसार, २४० ग. लाटीसंहिता, ५/७८ घ. तत्त्वार्थवार्तिक, ७/२८ ४. “ तथा कामे कामोदयजन्ये मैथुने अथवा सूचनात् सूयमिति न्यायात् कामेषु कामभोगेषु तत्र कामौ शब्द रूपे भोगा गन्ध रस स्पर्शः तेषु तीव्राभिलाषः अत्यन्ततरध्यवसायित्वं यतो वाजीकरणादिनाऽनवरतसुरतसुखार्य मदनमुद्दी - पयन्ति " - धवलबिन्दुमूलवृत्ति, ३ / २६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002128
Book TitleUpasakdashanga aur uska Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhash Kothari
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1988
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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