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है । " श्रावकप्रज्ञप्तिटोका एवं आवश्यक हरिभद्रवृत्ति में वेश्या या अन्य पुरुष में आसक्त होकर भाड़े को ग्रहण करने वाली अनाथ और कुलीन स्त्री को अपरिगृहीता कहा है। उसमें गमन करने की अपरिगृहीतागमन माना है । २
३. अनङ्गक्रीड़ा
श्रावकाचार
"अनंगक्रीडत्ति अनंगानि मैथुनकम्मां "
उपासक दशांगटीका में आचार्य अभयदेव ने कामसेवन के अंगों से भिन्न अंगों के द्वारा मैथुन सेवन करना अनंगक्रीड़ा है । प्रायः सभी आचार्यों ने इसका यही स्वरूप निर्दिष्ट किया है । *
४. परविवाहकरण
"परविवाहकरणमयमभिप्रायः स्वदारसं तोषिनोहिनयुक्तं परेषां विवाहादिकरणेव"
उपासक दशांगटीका में आचार्य अभयदेव ने अपने परिवार के सदस्यों को छोड़कर अन्य का विवाह कराना परविवाहकरण कहा है। " चारित्रसार व सर्वार्थसिद्धि में अपनी कन्या को छोड़कर दूसरों का विवाह कराना पर विवाहकरण माना गया है | श्रावकप्रज्ञप्तिटीका में
१. " गणिकात्वेन वा पुंश्चलित्वेन वा पर-पुरुषगमनशीला अस्वामिका सा अपरिगृहीता, तस्या गमनमित्वरिकाऽपरिगृहीता गमनम् - चारित्रसार, २४० २. क. अपरिगृहीता नाम वेश्या अन्यसक्ता गृहीतभाटी कुलाङ्गना वा अनाथेति तद्गमनम् अपरिगृहीतागमनम् - श्रावकप्रज्ञप्ति टीका, २७३
ख. आवश्यक हरिभद्रवृत्ति, ६/८२५
३. उपासक दशांगसूत्रटीका - अभयदेव, पृष्ठ ३२
४. क. सर्वार्थसिद्धि, ७/२८
ख. श्रावकप्रज्ञप्तिटीका, २/७३ ग. रत्नकरण्डकटीका, २/१४ ५. उपासक दशांग सूत्रटीका - अभयदेव, पृष्ट ३७
६. क. परस्य विवाहकरणं पर विवाहकरणम् - चारित्रसार, २४० ख. कन्यादानं विवाह परस्य विवाहः परविवाहः परविवाहस्य करणं
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परविवाहकरणम् - सर्वार्थसिद्धि, ७/२८
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