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________________ ११० १. इत्वरिपरिगृहीतागमन " इत्तरिय परिग्गहियागमणे त्ति इत्वरकालं परिगृहीताकाल शब्द लोपादित्वरपरिगृहीता भाटीप्रदानेन कियंतमपिकालंदिवसमासादिकं स्ववशीकृतेत्यर्थः " उपासक दशांग : एक परिशीलन उपासक दशांगटीका में आचार्य अभयदेव ने इत्वर का अर्थ अल्प समय किया है, भाड़ा देकर कुछ काल के लिये अपनी पत्नी जैसा व्यवहार करना इत्वरिपरिगृहीतागमन अर्थं किया है ।" जिस स्त्री का एक पुरुष स्वामी है वह परिगृहीता कहलाती है, ऐसी व्यभिचारिणी स्त्री में गमन करने को चारित्रसार के कर्ता चामुण्डाचार्य ने इत्वरिका-परिगृहीता गमन कहा है। सागारधर्मामृत में बिना स्वामी वाली असदाचारिणी स्त्री को इत्वरिका कहा गया है, उसे गमन के समय रुपया देकर कुछ काल के लिए अपना बनाना भी दोष है । लाटसंहिता में इत्वfरका शब्द का अर्थं व्यभिचारिणी स्त्री किया है, ऐसी स्त्री के साथ बातचीत करना, शरीर स्पर्श करना, क्रीड़ा करना इस व्रत का अतिचार माना गया है। २. अपरिगृहीतागमन " अपरिगृहिता नाम वेश्यान्यासक्ता परिगृहीताभाटक कुलांगनावा अनाथेति अस्याप्यतिचारतातिक्रमादिभिरे" उपासक दशांग टीका में आचार्य अभयदेव ने वेश्या या पति द्वारा परित्यक्त व अनाथ को पैसा देकर अपना बना लेने को अपरिगृहीतागमन अर्थ किया है । चारित्रसार में वेश्या या व्यभिचारिणी होने से पर-पुरुषों के पास जाने वाली पति रहित स्त्री को इत्वरिका अपरिगृहीता कहा है । उसमें गमन करना इत्वरिकाअपरिगृहीतागमन कहलाता १. उपासकदशांग सूत्रटीका - अभयदेव, पृष्ठ ३२ २. " या पुनरेकपुरुष भर्तृका सा परिगृहीता, तस्या गमनमित्वरिकापरिगृहीता गमनम् " - चारित्रसार, २४० ३. सागारधर्मामृत, ४ / ५८ - व्याख्या ४. लाटीसंहिता ५/७५ ५. उपासक दशांगसूत्रटीका - अभयदेव, Jain Education International पृष्ठ ३२ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002128
Book TitleUpasakdashanga aur uska Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhash Kothari
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1988
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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