________________
१०६
उपासकदशांग : एक परिशीलन
प्रमाण रखना कूटतुलाकूटमान अर्थ है ।' प्रश्नोत्तरश्रावकाचार एवं लाटीसंहिता में खरीदने के लिए बाँट या गज अधिक रखना तथा बेचने के लिए कमती रखने को हिनाधिकमनोन्मान कहा है । "
ર
५. तत्प्रतिरूपव्यवहार
"तप्पडिरूवगववहारेत्ति तेन प्रतिरूपकं सदृशं तत्प्रतिरूपकं तस्यविवधमवहरणं व्यवहारः "
उपासक दशांगटीका व श्रावकप्रज्ञप्तिटीका में अधिक मूल्य वाली वस्तु में उसी के अनुरूप कम मूल्य वाली वस्तु मिलाकर बेचना तत्प्रतिरूपक व्यवहार अर्थ किया है ।" प्रश्नोत्तरश्रावकाचार एवं लाटीसंहिता में भी यही स्वरूप अंकित है |
ब्रह्मचर्य - अणुव्रत
श्रावक का चौथा अणुव्रत ब्रह्मचर्य है, जिसका सामान्य अर्थ अब्रह्म का सेवन न करना है । इस अब्रह्म की परिभाषा जैन ग्रन्थों में विस्तार से दी गयी है । उपासक दशांगसूत्र में अपनी पत्नी के अतिरिक्त अन्य स्त्रियों से मैथुन सेवन करना अब्रह्म का स्वरूप माना गया है । आचार्य कुन्दकुन्द
१. क. उपासकदशांगटीका - अभयदेव, पृष्ठ ३१ ख. श्रावकप्रज्ञप्तिटीका, १५८
२. क. प्रश्नोत्तरश्रावकाचार, १४ / ३२
ख. लाटीसंहिता, ५/५४
३. क. उपासकदशांगटीका - अभयदेव, पृष्ठ ३२
ख. श्रावकप्रज्ञ सिटीका, १५९
४. क. प्रश्नोत्तरश्रावकाचार, १४/३४
ख. लाटीसंहिता, ५/५५
५. क. सदार संतो सिए परिमाणं करेइ । नन्नत्थ एक्काए सिवानंदाए भारियाए अवसेसं सव्वं मेहुणविहि पच्चक्खामि
ख. मेहुणाओ वेरमणं सदार संतोसिए अवसेसं मेहुणविहि
Jain Education International
- उवासगदसाओ १/१६
- आवश्यकसूत्र, पृष्ठ ३२४
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org