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________________ १०४ उपासक दशांग : एक परिशीलन अतः निष्कर्ष रूप यदि व्यक्ति मानसिक रूप से यह सोच ले कि चोरी करने तथा कराने वाला दोषी है मुझे इस वस्तु को लेने में क्या आपत्ति है ? परन्तु यह भी व्रत धारण करने वाले के लिए अनुचित है। साथ ही तस्करों को माल देना, उनसे माल लेना, उनको कानूनी सहायता देना भी अतिचारों में सम्मिलित हैं। राजकीय नियमों का उल्लंघन करना, करों का समय-समय पर भुगतान नहीं करना, व्यापारिक कार्य-कलापों में, लेन-देन में, कम-ज्यादा देना एवं किसो असलो वस्तु में नकली वस्तु को मिला देना आदि श्रावकव्रत को धारण करने वाले अणुव्रती के लिए अचौर्याणुव्रत के अतिचार हैं । इनसे उसे बचना चाहिए | श्रावक को सर्वहित ध्यान में रखकर इसका पालन करना चाहिए तभी सुख-शांति एवं आत्मा का विकास संभव हो सकेगा । व्रत का पूर्णरूपेण लाभ उसका निरतिचार पालन करने में ही है । जिससे जीवन सीमित एवं नीतिमय बन सकता है । १. स्तेनाहुत - उपासकदशांगटीका में चोर द्वारा लाई वस्तु स्वीकार करने को स्तेनाहृत कहा है । ' "स्तेनाहुतमतिचार उत्तोतिचारताचास्य साक्षाचौयं प्रवृत्ते " श्रावकप्रज्ञप्ति टीका में स्तेन का अर्थ चोर तथा चोरों द्वारा लाई गई वस्तुओं को लोभ से ग्रहण करने को स्तेनाहृत कहा है। प्रश्नोत्तरश्रावकाचार एवं लाटीसंहिता में मनुष्यों को चोरी करने की प्रेरणा देना और उपाय बताने को स्तेनप्रयोग कहा है । २. तस्करप्रयोग उपासक दशांगसूत्र की टीका में आचार्य अभयदेव ने चोरों को चोरी के कार्य में प्रवृत्त करना एवं 'इस प्रकार करो' इस प्रकार अनुज्ञा करना १. उपासकदशांगटीका, अभयदेव, पृष्ठ ३१ २. श्रावकप्रज्ञप्तिटीका, पृष्ठ १५८ ३. प्रश्नोत्तरश्रावकाचार, १४ / ३० ४. लाटीसंहिता, ५ / ४९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002128
Book TitleUpasakdashanga aur uska Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhash Kothari
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1988
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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