SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 114
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रावकाचार स्तेय के प्रकारप्रश्नव्याकरणसूत्र में चोरी के चार प्रकार बताये गये हैं 'सामीजीवादत्तं, तित्थयरेणं तहेय य गुरुहिं । एवमदत्त सरुवं परुवियं आगम धरेहि ।' अर्थात स्वामीअदत्त, जीवअदत्त, देवअदत्त एवं गुरुअदत्त ये चार भेद किये हैं।' अर्थात् श्रावक स्वामी की, जीव की, देव की एवं गुरु की आज्ञा लिये बिना वस्तु को ग्रहण नहीं करे। श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र में चोरी के ५ भेद किये हैं। यथा-खात-खनना यानि सेंध लगाकर वस्तुएं ले जाना, गठडी खोलना अर्थात् बिना पूछे किसी की गांठ खोलकर सामान निकालना, ताला तोड़ना, मालिक की पड़ी हुई वस्तु उठा लेना, लूट-खसोट द्वारा जबरदस्ती वस्तू अपने अधीन करना।२ यहीं पर सचित्त अदत्तादान एवं अचित्त अदत्तादान दो भेद भी प्राप्त होते हैं। एक अन्य दृष्टि से चोरी के चार प्रकार भी कहे हैं :(क) द्रव्य चोरी-धन आदि चुरा लेना। (ख) क्षेत्र चोरी-खेत, बगीचा या जमीन आदि दबा लेना। (ग) काल चोरी-वेतन, किराया, ब्याज आदि में न्यूनाधिक करना। (घ) भाव चोरी-किसी कवि, लेखन आदि के भावों को चुराना । अचौर्य का स्वरूपउपासकदशांगसूत्र में अस्तेय अणुव्रत का स्वरूप बताते हुए कहा है 'तयाणंतरं च णं थूलगं आदिण्णादाणं पच्चक्खाइ जावज्जीवाए दुविहं तिविहेणं न करेमि न कारवेमि मणसा वयसा कायसा' १. जिनवाणी-अक्टूबर १९७९, पृष्ठ ६ २. आदिण्णादाणे पंचविहे पण्णत्ते-तंजहा खत खण्ण गंठि भेयणं, जतुग्घाडनं पडियंवत्थु हरणं, ससामिय वत्थुहरणं-जिनवाणी-अक्टूबर १९७९, पृष्ठ ६ ३. आवश्यकसूत्र, ३ ४. जिनवाणी-अक्टूबर १९७९, पृष्ठ ७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002128
Book TitleUpasakdashanga aur uska Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhash Kothari
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1988
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy