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________________ १०० उपासकदशांग : एक परिशीलन बचने का प्रयत्न करता है। बिना परिणाम का विचार कर दोषारोपण करना, एकान्त में बातचीत कर रहे व्यक्ति पर दोष लगाना, अपनी स्त्री की गुप्त बात प्रकट करना, झूठा लेख लिखना एवं मिथ्या उपदेश देना सत्याणुव्रत के दोष माने गये हैं । अस्तेय अणुव्रत -- अहिंसा एवं सत्य की व्याख्या के उपरान्त तृतीय क्रम में अस्तेय या अदत्तादान विरमण व्रत आता है । स्तेय या अदत्तादान का सामान्य अर्थ चोरी किया जा सकता है। इसके विवेचन के पूर्व चोरी के स्वरूप एवं उनके प्रकारों के बारे में जानकारी होना अत्यन्त आवश्यक है । किसी की बिना दी हुई वस्तु ले लेना चोरी है । उपासकदशांग में अदत्तादान को ही चोरी कहा है । यहाँ " आदिण्णादाणं" शब्द आया है जिसका सामान्य अर्थ बिना दी हुई वस्तु को लेने से ही हैं।' आवश्यकसूत्र में भी यही स्वरूप प्रतिपादित किया है । २ तत्त्वार्थसूत्र में आचार्य उमास्वाति ने "अदत्तादानं स्तेयम्" कहकर बिना दी हुई वस्तु को लेने को चोरी कहा है । " पुरुषार्थसिद्धयुपाय में प्रमत्तयोग से दूसरे के द्वारा नहीं दिये हुए धन-धान्यादि परिग्रह को चोरी कहा है । सोमदेवसूरि ने उपासकाध्ययन में सार्वजनिक जल, तृण आदि वस्तुओं के सिवाय अन्य सब बिना दी हुई वस्तुओं का ग्रहण करना चोरी बताया है । चारित्रसार व धवलपुराण में ग्राम, आराम, शून्यगृह और वीथी आदि में गिरे, पड़े या रखे हुए मणी, सुवर्ण तथा वस्त्र आदि के ग्रहण का विचार अदत्तादान माना है । आचार्य हरिभद्र ने शास्त्रवार्तासमुच्चय में स्वामी की आज्ञा के बिना पराई वस्तु के लेने को अदत्तादान कहा है । १. उवासगदसाओ, १ / १५ २. आवश्यक सूत्र - मुनिघासीलाल, पृष्ठ ३२३ ३. तत्त्वार्थ सूत्र, ७/१५ ४. पुरुषार्थं सिद्धघुपाय, श्लोक १०२ ५. उपासकाध्ययन, श्लोक ३६४ ६. क. अदखस्य अदिणस्स आदाणं गहणं अदत्तादाणं - धवलपुराण, १२ / २८१ ख. चारित्रसार, पृष्ठ ४१ ७. धर्मविरोधेन स्वामिजीवाधननुज्ञातपरकीय द्रव्य ग्रहणम् अदत्तादानम् Jain Education International - शास्त्रवार्तासमुच्चय, १/४ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002128
Book TitleUpasakdashanga aur uska Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhash Kothari
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1988
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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