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श्रावकाचार
है।' प्रश्नोत्तरश्रावकाचार और लाटीसंहिता में दूसरों को ठगने के
लिए लेख लिखने को कूटलेखकरण कहा जाता है।' ५. मोसोवएसे--चारित्रसार में अन्य पुरुष को अन्यथा प्रवृत्ति कराना
या अन्यथा अभिप्राय कहना मिथ्योपदेश कहा है। प्रश्नोत्तरश्रावकाचार में किसी कार्य या द्रव्य कमाने के लिए झूठा उपदेश देना, एवं लाटीसंहिता में इस बात को मैं नहीं कहूँगा, तुम कहना इस प्रकार मिथ्यावचन कहने के लिए प्रेरणा देना मृषापदेश कहा गया है ।
दिगम्बर आचार्यों ने सहसाअब्भाख्यान की जगह न्यासापहार अतिचार का विधान किया है, जिसका अर्थ दूसरों को धरोहर को मार लेना, न देना, अपहरण कर लेना आदि हैं।
_ इसी तरह साकारमंत्रभेद को स्वदारमंत्रभेद की जगह माना है। जिसका अर्थ है--दूसरों की बात को नहीं समझकर इशारों द्वारा देखकर अनुमान से बात कहना।'
सत्य अणुव्रत में व्यक्ति मिथ्या भाषा का प्रयोग नहीं करता है साथ हो ऐसे वचन भी नहीं बोलता है जो सत्यता लिए हए होने पर भी सम्मुख खडे व्यक्ति को पीडा पहँचाता हो। वह विवेकयक्त होकर अल्प भाषण करता है और सत्य व्रत को खण्डित करने वाले दोषों को ध्यान में रखकर उनसे १. क. अन्येनानुक्तं यत्किञ्चित् पर प्रयोगवशादेव तेनोक्तमनुष्ठितमिति वंचना निमित्तं लेखन कूटलेखक्रिया-सर्वार्थसिद्धि, ७/२६
ख. चारित्रसार, पृष्ठ ५ ग. रत्नकरण्डकटीका, ३/१०
घ. सागारधर्मामृत स्वोपज्ञटीका, ४/४५ २. क. प्रश्नोत्तरश्रावकाचार, १३/३५
ख. लाटीसंहिता ५/२०-२१ ३. तत्राभुयदयनिःश्रेय सार्थेषु क्रिया विशेषेषु अन्यस्यान्यथा प्रवर्तनमभिसन्धानं
वा मिथ्योपदेश-चारित्रसार, ५ ४. प्रश्नोत्तरश्रावकाचार, १३/३३ ५. लाटीसंहिता, ५/१८ । ६. लाटीसंहिता, ५/२२ ७. प्रश्नोत्तरश्रावकाचार, १३/३६
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