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________________ उपासकदशांग : एक परिशीलन है।' प्रश्नोत्तरश्रावकाचार में किसी द्रव्य के लोभ में स्त्री-पुरुष या अन्य के छिपे कार्य को प्रकट करने को रहसाभ्याख्यान की संज्ञा दी है। लाटीसंहिता में शंका उत्पन्न कराकर स्त्री-पुरुष की बात या क्रिया को प्रकाशित करना रहसाभ्याख्यान कहा है। ३. स्वदारमन्त्रभेद-उपासकदशांगटीका में अपनी स्त्री की गुप्त बातों को प्रकट करना स्वदारमंत्रभेद कहा है। "स्वदारसंबंधिनो मन्त्रस्य विश्रंभ जल्पश्चभेदः प्रकाशनम् स्वदारमंत्र भेदः" श्रावकप्रज्ञप्तिटीका में अपनी पत्नी के विश्वासपूर्ण कथन को दूसरों को कहना स्वदारमंत्रभेद किया है। पारिवारिक जीवन में भी ऐसी अनेक गोपनीयताएं होती हैं, जिनका प्रकटन उचित नहीं होता है। ४. कूटलेखकरण-उपासकदशांगटीका में कूटलेखकरण का अर्थ--झूठा लेख लिखना, वह भी यदि असावधानी व अविवेक में लिखा हो, अर्थात् श्रावक यह नहीं विचारे कि झठ बोलने का त्याग है, झठ लिखने का नहीं। इसके साथ जाली-दस्तावेज बनाना, झूठी मुद्राएं बनाना, जाली हस्ताक्षर करना कूटलेखक्रिया है। सर्वार्थसिद्धि आदि में दूसरे के द्वारा जो नहीं कहा गया है, उसे अन्य की प्रेरणा से कहना कि उसने ऐसा कहा या किया है, कूटलेखक्रिया कहा गया १. क. यत्स्त्री-पुंसाभ्यामेकान्तेऽनुष्ठितस्य क्रिया विशेषस्य प्रकाशनं तऽहोभ्याख्यानं वेदितव्यम्-सर्वार्थसिद्धि, ७/२६ ख. चारित्रसार-श्रावकाचारसंग्रह, भाग, १ पृष्ठ २३९ २. प्रश्नोत्तरश्रावकाचार, १३/३४ ३. लाटीसंहिता, ५/१९ ४. उपासकदशांग-टीका, पृष्ठ २९ ५. "स्वदारमंत्रभेदं च स्वकलत्रविश्रब्धभाषितान्यकथनं चेत्यर्थः" -श्रावकप्रज्ञप्तिटीका, २६३ ६. उपासकदशांगटीका-अभयदेव, पृष्ठ २९-३० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002128
Book TitleUpasakdashanga aur uska Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhash Kothari
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1988
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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