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________________ द उपासकदशांग : एक परिशीलन वाता है, वह सत्याणुव्रत का धारी है।' कार्तिकेयानुप्रेक्षा में सत्याणुव्रत का स्वरूप बताते हुए कहा है कि जो हिंसा करने वाले वचन नहीं बोलता है, निष्ठुर और दूसरों को कष्ट देने वाले वचन नहीं बोलता है एवं हितमित प्रिय तथा धर्मप्रकाशक वचन बोलता है वह सत्याणुव्रत का धारी है।' वसुनन्दि ने अपने वसुनन्दि श्रावकाचार में कार्तिकेयानुप्रेक्षा का ही अनुसरण किया है। अतिचार व्रत के अतिक्रमण की चार श्रेणियों में तीसरी श्रेणी अतिचार है । प्रत्येक व्रत के ५-५ अतिचार कहे गये हैं । उपासकदशांगसूत्र में स्थूल मृषावाद विरमण व्रत के पाँच अतिचार जानने के योग्य कहे हैं किन्तु आचरण करने योग्य नहीं कहे हैं। वे हैं-सहसाभ्याख्यान, रहस्साभ्याख्यान, स्वदारमन्त्रभेद, मषोपदेश, कूटलेखकरण ।४ । "थूलगं मुसावायं वेरमणस्स पंच अइयारा जाणियव्वा न समारियव्वा । तंजहा-सहसा अब्भक्खाणे, रहसा अब्भक्खाणे, सदारमंतभेए, मोसोवएसे, कूडलेहकरणे।" रत्नकरण्डकश्रावकाचार में सत्याणुव्रत के निम्न पाँच अतिचार बताये हैं :-दूसरे की निन्दा करना, दूसरे की गुप्त बातों को प्रकट करना, चुगली खाना, नकली दस्तावेज आदि लिखना, दूसरों की धरोहर का अपहरण करने वाले वचन बोलना। तत्त्वार्थसूत्र में मिथ्योपदेश, असत्य दोषारोपण, कुटलेखप्रकरण, न्यास-अपहार, मंत्रभेद-ये पांच अतिचार कहे हैं।' उपासकाध्ययन में सोमदेवसूरि ने दूसरों के मन की बात दूसरों पर १. स्थूलमलीकं न ददति न परान् वादयति सत्यमपि विपदे यत्तद्वदन्ति सन्तः स्थूलमृषावाद वैरमणम्-रत्नकरण्डकश्रावकाचार, ३/५५ । २. कातिकेयानुप्रेक्षा, श्लोक ३२-३३ ३. वसुनन्दि श्रावकाचार, श्लोक २०९ ४. उवासगदसाओ, १/४२ ५. 'परिवाद रहोऽभ्याख्या पैशुन्यं कूटलेखकरणं च । न्यासापहारितापि च व्यतिक्रमाः पञ्च सत्यस्य ॥" -रत्नकरण्डकश्रावकाचार, श्लोक ३/५६ ६. तत्त्वार्थसूत्र, ७/२५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002128
Book TitleUpasakdashanga aur uska Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhash Kothari
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1988
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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