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श्रावकाचार
"थूलगं मुसावायं समणोवासओ पच्चक्खाई से य मुसावाय पंचविहे पण्णत्ते तंजहा-कन्नालीए, गवालीए, भोमालीए,
णासावहारे, कूडसक्खिज्जे" अर्थात् श्रमणोपासक जिस स्थूल असत्य का त्याग करता है वह पांच प्रकार का है
(क) वर कन्या के सम्बन्ध में मिथ्या जानकारी देना । (ख) गाय आदि के सम्बन्ध में असत्य बोलना। (ग) भूमि के सम्बन्ध में झूठी जानकारी देना। (घ) धरोहर को देने के सम्बन्ध में असत्य जानकारी देना। (ङ) झूठी साक्षी देना।'
आचार्य हेमचन्द्र ने योगशात्र में इन्हीं पांच बातों को यथाक्रम से निर्दिष्ट किया है। सत्य-स्वरूप ___ असत्य के स्वरूप व उसके प्रकारों के वर्णन करने से सत्य के स्वरूप को समझने के लिए प्रारम्भिक भूमिका का निर्माण हो जाता है। जैन आगम ग्रन्थ उपासकदशांगसूत्र के प्रथम अध्ययन में आनन्द श्रावक सत्याणुव्रत को ग्रहण करता हुआ कहता है कि मैं यावज्जीवन दो करण तीन योग से स्थूल मृषावाद का प्रयोग नहीं करूँगा, नहीं करवाऊँगा।' यथा
"तयाणंतरं च णं थूलगं मुसावायं पच्चक्खाइ, जावज्जीवाए दुविहं तिविहेण न करेमि न कारवेमि मनसा, वयसा,
कायसा" रत्नकरण्डकश्रावकाचार में आचार्य समन्तभद्र ने सत्याणुव्रत का स्वरूप बताते हुये कहा है कि जो लोक विरुद्ध, राज्यविरुद्ध एवं धर्म विरुद्ध स्थूल झूठ न स्वयं बोलता है न दूसरों से बुलवाता है, साथ ही दूसरों की विपत्ति के लिये कारणभूत सत्य को न स्वयं कहता है, न दूसरों से कहल१. श्रावकप्रतिक्रमण सूत्र-दूसरा अणुव्रत २. योगशास्त्र, २५४-५५ ३. उवासगदसाओ, १/१४
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