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उपासकदशांग : एक परिशीलन
(ग) कुछ का कुछ कहना-जिस वचन में अनेक स्वरूप चतुष्टय से
विद्यमान वस्तु भी अन्य स्वरूप में कही जाती है।' (घ) चौथे असत्य के तीन भेद हैं--गहित, सावध और अप्रिय १. जो वचन दुष्टता व हँसो से मिश्रित हों तथा मिथ्यात्व रूप
एवं व्यर्थ हों, वे सभी गर्हित हैं । २. जिन वचनों से प्राणिघात का प्रसंग उपस्थित होता हो ऐसे
छेदन, भेदन, मारण आदि संयुक्त वचनों को सावध वचन
कहते हैं। ३. जो वचन अप्रीतिकारक, वैरवर्धक, कलहकारक एवं दूसरों को
संताप देने वाले हैं, वे अप्रियरूप कहे जाते हैं । सोमदेवसूरि ने उपासकाध्ययन में असत्य के चार भेद किये हैं-- (क) असत्य-सत्य-लोक व्यवहार में प्रचलित होने से दैनिक नियम में
बोले जाने वाले शब्द, जैसे आटा पीसना, कपड़ा बुनना। (ख) सत्य-असत्य--व्यक्ति के कथन में कथंचित् सत्य होता है जैसे--
ये शाम को दे दूंगा, वह देता तो है पर शाम की जगह कल
देता है। (ग) सत्य-सत्य-वस्तु को उसी रूप में कहना । (घ) असत्य-असत्य--व्यक्ति के पास उपलब्ध नहीं होने पर भी देने का
वायदा करना । आचार्य अमितगति ने उपासकाचार में पुरुषार्थसिद्धयुपाय की तरह असत्य के चार भेद किये हैं परन्तु नामों में परिवर्तन कर दिया गया है। उन्होंने असद्भावन, भूतनिह्नव, विपरीत और निन्द्य नाम दिया है।'
श्रावकप्रतिक्रमण में श्रावक बारह व्रतों के ग्रहण में दूसरे स्थूल मृषावाद में जो स्थूल असत्य निरूपित किये हैं वे इस प्रकार हैं :-- १. पुरुषार्थसिद्धयुपाय, ९४ २- वही, ९६ ३. वही, ९७ ४. वही, ९८ ५. उपासकाध्ययन, ३८३, ३८४ ६. अमितगतिकृतश्रावकाचार, गाथा ४८
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