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________________ श्रावकाचार सिद्धि के कर्ता ने असद् का अर्थ अप्रशस्त किया है। पुरुषार्थसिद्धयुपाय में आचार्य अमृतचन्द्र ने कहा है कि जो प्रमाद के योग से असद् कथन किया जाता है, वह असत्य कहलाता है।' अतः ऐसे वचन जिनसे प्राणियों को पीड़ा का अनुभव होता है, उनके आत्म सम्मान को ठेस पहुँचती है एवं प्रमादवश होकर अपलाप किया जाता है वे सब असत्य की संज्ञा पाते हैं। असत्य के प्रकारस्थानांगसूत्र में असत्य के चार प्रकार बतलाये गये हैं "चउव्विहे मोसे पण्णत्ते तंजहा कायअणुज्जुयया, भास अणुज्जुयया, भाव अणुज्जुयया, विसंवादणाजोगे" । अर्थात् काय के द्वारा, असत्य वचन के द्वारा अयथार्थ, मन में कुटिलता रखना, विसंवादों से धोखा देना।२ उपासकदशांगसत्र में मन, वचन व काय से तीन प्रकार का असत्य कहा है। श्रावक प्रतिक्रमणसूत्र में एवं योगशास्त्र में वर, कन्या के सम्बन्ध में, गाय, भैंस आदि पशुओं के सम्बन्ध में, भूमि के विषय में पांच प्रकार के असत्य कहे हैं । ४ पुरुषार्थसिद्धयुपाय में असत्य के चार प्रकार बताये गये हैं । यथा(क) विद्यमान वस्तु का निषेध करना-अर्थात् जिस वचन में अपने द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव से विद्यमान वस्तु भी निषेधित की जाती है। (ख) अविद्यमान को विद्यमान बताना-जिस वचन में पर द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव से अविद्यमान को भी वस्तु स्वरूप में प्रकट किया जाता है। १. (क) उपासकाध्ययन-सोमदेवसूरि, प्रस्तावना ७७ (ख) पुरुषार्थ सिद्ध युपाय, ९१ २. स्थानांगसूत्र, अध्ययन ४ ३. मुसावायं पच्चक्खाई xx मनसा, वयसा, कायसा-उवासगदसाओ, १/१४ ४. क. श्रावक प्रतिक्रमणसूत्र, दूसरा अणुव्रत ख. योगशास्त्र २/५४ ५. पुरुषार्थसिद्धय पाय, ९२ ६. वही, ९३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002128
Book TitleUpasakdashanga aur uska Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhash Kothari
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1988
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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