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________________ श्रावकाचार में जीव के नाक कानादि अङ्गों को काटने को छविच्छेद नाम दिया है।' लाटी-संहिता में किसी को दुःख देने वाला अधिक छेदन इसके अन्तर्गत माना है ।२ जैन आचार्यों ने व्यक्ति को उचित पारिश्रमिक से कम देने को भी छविच्छेद माना है।' अतिभार-उपासकदशांगटीका में 'अइभारे त्ति अतिभारारोपणं तथाविध शक्ति विकलानां महाभारारोपणम्' कहकर सामर्थ्य से अधिक बोझ लादना, या शक्ति हीन विकलांगों पर भार डालना, अधिक काम लेना अर्थ किया है।४ श्रावकप्रज्ञप्तिटीका में द्विपद, चतुष्पद जितने बोझ को कन्धे अथवा पीठ पर स्वाभाविक रूप से ले जा सके, उससे अधिक लादना अतिभार माना है।५ चारित्रसार तथा प्रश्नोत्तरश्रावकाचार में अति लोभ से व्यक्तियों पर न्यायसंगत भार से अधिक लादने को इसके अन्तर्गत माना है। कहीं-कहीं पर शक्ति से अधिक कार्य कराने को भी अतिभार माना है । ५. अन्नपान निरोध-उपासकदशांगटीका में-'अशनपानीयाप्रदानमिहाय विभागः' कहकर मूक पशु को भूखा-प्यासा रखना एवं समय पर चारापानी नहीं देने को अन्नपान निरोध कहा है। चारित्रसार में बैल आदि के खान-पान को रोककर भूख-प्यास से पीड़ित करना अन्नपान १ क. चारित्रसार-श्रावकाचारसंग्रह, भाग १/२३९ ख. प्रश्नोत्तरश्रावकाचार, १२/१३७ २. लाटीसंहिता, ४/२६५ ३. शास्त्री, देवेन्द्रमुनि-जैन आचार : स्वरूप और सिद्धान्त, पृ० ३०१ ४ उपासकदशांगटीका-अभयदेव, पृ० २७ ५. भरणं भारः अतिभरणम् अतिभार : प्रभूतस्य पूगफलादेः स्कन्धपृष्ठारोपण मित्यर्थः-श्रावकप्रज्ञप्तिटीका, २५८ ६. क. चारित्रसार-श्रावकाचारसंग्रह, १/२३९ ख. प्रश्नोत्तर श्रावकाचार, १२/१३८ ग. लाटीसंहिता ४/२६८ ७. शास्त्री, देवेन्द्रमुनि-जैन आचार, सिद्धान्त और स्वरूप, पृष्ठ ३०१ ८. उपासकदशांगटीका-अभयदेवसूरि, पृष्ठ २७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002128
Book TitleUpasakdashanga aur uska Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhash Kothari
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1988
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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