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उपासकदशांग : एक परिशीलन
से बांधना किया है ।' लाटीसंहिता में किसी भी पशु को सांकल, रस्सी आदि से इस प्रकार कसकर बांधना जिससे उसे कष्ट पहुंचे, बन्ध कहा गया है। इसी प्रकार के विचार सागारधर्मामत के विवेचनकार और
उपासकदशांग के टीकाकारों ने भी प्रकट किये हैं। , वध-उपासकदशांगटीका में 'वधोयष्टयादिभिस्ताडन' कहकर वध का
अर्थ घातक प्रहार, जिससे अंगोपाङ्ग को हानि पहुँचे, किया है । सर्वार्थसिद्धि में लकड़ी, चाबुक या बेंत आदि से ताड़ित करने को वध कहा है ।
चारित्रसार व प्रश्नोत्तरश्रावकाचार में भी यही स्वरूप बताया है।'' लाटी-संहिता में किसी भी पुरुष या पशु को लकड़ी, बेंत, थप्पड़, घूसा मारने को वध कहा है। आधुनिक विद्वानों ने किसी की मजबरी का फायदा उठाना एवं अनैतिक दृष्टि से शोषण करने को भी वध ही माना है। ३. छविच्छेद-उपासकदशांगटीका में 'छविछेदत्तिशरोरावयवछेदः' कहकर
क्रोध में आकर किसी का अङ्ग काट डालना, अपनी प्रसन्नता के लिए कुत्ते आदि की पूछ काटना अर्थ किया है। श्रावकप्रज्ञप्तिटोका एवं धवलपुराण में छवि को शरीर कहकर करपत्रादि द्वारा शरीर को
छेदने को छविच्छेद कहा है। चारित्रसार व प्रश्नोत्तरश्रावकाचार १. प्रश्नोत्तरश्रावकाचार, १२/१३५ २. लाटी-संहिता, अध्ययन ४/२६४ ३. उपासदशांगटीका-अभयदेव पृष्ठ २७ ४. दण्ड-कशा वैभादिभिरभिघातः प्राणिनां वधः-सर्वार्थसिद्धि, ७/२५ ५. क. चारित्रसार-श्रावकाचारसंग्रह, भाग १/२३९ से उद्धृत
ख. प्रश्नोत्तरश्रावकाचार, १२/१३६ ६. लाटीसंहिता, ४/२६३ ।। ७. शास्त्री, देवेन्द्र मुनि-जैन आचार : स्वरूप और सिद्धान्त, पृष्ठ ३०१ ८. उपासकदशांगटीका-अभयदेव, पृ० २७ ९. क. छविः शरीरम् तस्य छेदः पाटनं कर पत्रादिभिः-श्रावकप्रज्ञप्ति, २५८ ख. छवि शरीरं तस्य पहादीणं किरिया विसेसेहि खंडणं छेदोछविच्छेदो, धवल--
पुराण १४, पृ० ४०१
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