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________________ उपासक दशांग : एक परिशीलन उदुम्बर एवं तीन मकारों के त्याग को अष्टमूलगुण कहा है। पं० होरालाल शास्त्री ने वसुनन्दि-श्रावकाचार की भूमिका में इन अष्टमूलगुणों के सम्बन्ध में विस्तार से प्रकाश डाला है ।" इन मूलगुणों की पालना में मुख्य रूप स अहिंसा की पालना निहित है। इससे श्रावक का खान-पान भी अहिंसक हो सकता है । अतिचार ८८ अहिंसाणुव्रत के पालन के लिए हिंसा से बचना जरूरी है, उतना ही अहिंसा के अतिचारों से भी । अतिचार आदि के स्वरूप के सम्बन्ध में प्राचीन जैन ग्रन्थों में विस्तार से वर्णन प्राप्त होता है । जैन आगम साहित्य स्थानांगसूत्र में व्रत के खण्डन को चार कोटियाँ बताई गयी हैं (क) अतिक्रम - व्रत में स्खलना का मन में चिन्तन होना । (ख) व्यतिक्रम - व्रत को खण्डित करने के साधन जुटाना । (ग) अतिचार - व्रत का आंशिक रूप से खण्डन । (घ) अनाचार -- व्रत का खण्डन । इस प्रकार अनजान में या अनभिज्ञता में व्रत में कहीं स्खलना हो जाती है तो उसे अतिचार कहा जाता है । ज्ञानियों ने प्रत्येक व्रत के पाँचपाँच अतिचार कहे हैं : उपासक दशांगसूत्र में अहिंसा अणुव्रत के पाँच अतिचारों का वर्णन करते हुए लिखा है " तयानंतर च णं थूलगस्स पाणाइवाय वेरमणस्स समणोवास एवं पंच अइयारा पेयाला जाणियव्वा न समायरिया । तं जहा बंधे, वहे, छविच्छेए, अइभारे, भत्तपाणवोच्छेए" १. वसुनन्दि-श्रावकाचार, प्रस्तावना, पृष्ठ ३५ २. "तिविधे अतिक्कमे पण्णत्ते.... तिविधे वइक्कमे पण्णत्ते.... तिविधे अइयार पण्णत्ते.... तिविधे अणायारेपण्णत्ते" । ३/४/१७५ Jain Education International - स्थानांगसूत्र-मुनि मधुकर, For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002128
Book TitleUpasakdashanga aur uska Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhash Kothari
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1988
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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