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________________ श्रावकाचार ८७ महापुराण में भी पंच उदुम्बर फल आठ मूलगुणों का सर्वप्रथम उल्लेख स्वामी समन्तभद्राचार्य के रत्न - करण्डक-श्रावकाचार में प्राप्त होता है। उन्होंने मद्य, मांस व मधु के त्याग के साथ-साथ पाँच अणुव्रतों को आठ मूल-गुण कहा है।' आचार्य रविषेण ने अपने पद्मपुराण में मधु, मद्य, मांस, जुआ, रात्रि भोजन, वेश्यागमन के त्याग को नियम कहा है । इसमें मूलगुण शब्द का उल्लेख नहीं है । आ० जिनसेन ने रात्रि भोजन के स्थान पर उदुम्बर त्याग एवं वेश्यागमन में परस्त्री को जोड़कर रविषेण का समर्थन कर दिया है। अष्टमूलगुण शब्द न देकर मधु-त्याग, मांस-परित्याग, भक्षण - परिहार एवं हिंसादि पापों से विरति सर्वकालिक व्रत रूप दिया है | आचार्य अमृत चन्द ने पुरुषार्थसिद्धयुपाय में कहा है कि हिंसा के त्याग के इच्छुक को मद्य, मांस, मधु और पांच उदुम्बर फलों को छोड़ना चाहिए ।" सोमदेवसूरि ने उपासकाध्ययन में भी इन्हीं आठ को मूलगुण कहा है। आचार्य देवसेन ने अपने भावसंग्रह में तथा आचार्य पद्मनन्दि ने पंचविशतिका में भी यही आठ मूलगुण बताये हैं । ' पं० आशाधर ने सागारधर्मामृत में भी आठ मूलगुणों को गिनाकर आचार्य समन्तभद्र व महापुराण की मान्यता का ही प्रतिपादन कर दिया है । ' इस प्रकार मुख्य रूप से अमृतचन्द्र ने पुरुषार्थसिद्धयुपाय, सोमदेव ने उपासकाध्ययन, अमितगति ने उपासकाचार, पद्मनन्दि ने पंचविंशतिका, सावयधम्म दोहा, आशाधर ने सागारधर्मामृत तथा लाटीसंहिता में पाँच १. मद्य-मांस-मधुत्यागैः सहाणुव्रतपञ्चकम् अष्टो मूलगुणानाहुर्गृहिणां श्रमणोत्तमा ॥ २. पद्मपुराण, २०२ ३. हरिवंशपुराण, गाथा ४८ ४. महापुराण, ३८/१२२ ५. पुरुषार्थंसिद्धयुपाय, श्लोक ६१ व ७४ ६. मद्य मांसमधु त्यागे सहोदुम्बरपञ्चकैः अष्टावेते गृहस्थानामुक्ता मुलगुणाः श्रुते - उपासकाध्ययन, श्लोक २५५ ७. भावसंग्रह, श्लोक ३५६ ८. पंचविंशतिका, श्लोक २३ ९. सागारधर्मामृत, अध्याय २, श्लोक २, ३ - रत्नकरण्डकश्रावकाचार, ६६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002128
Book TitleUpasakdashanga aur uska Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhash Kothari
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year1988
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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