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७८ : तीर्थंकर, बुद्ध और अवतार : एक अध्ययन
केवल ज्ञान आम्र के वृक्ष के नीचे प्राप्त हुआ ।' अपनी ८४ हजार वर्ष की आयु पूर्ण कर इन्होंने भी सम्मेतशिखर पर निर्वाण प्राप्त किया। इनकी शिष्य सम्पदा में ५० हजार साधु एव ६० हजार साध्वियाँ थीं ऐसा उल्लेख है। त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र में इनके दो पूर्वभवों-धनपति राजा और महद्धिक देव का उल्लेख हुआ है।
पं० दलसुख भाई मालवणिया ने 'जैन साहित्य का बृहद् इतिहास' को भूमिका में अर को बौद्धपरम्परा के अरक बुद्ध से समानता दिखाई है । बौद्ध परम्परा में अरक नामक बुद्ध का उल्लेख प्राप्त होता है। भगवान् बुद्ध ने पूर्वकाल में होने वाले सात शास्ता वीतराग तीर्थंकरों की बात कही है। आश्चर्य यह है कि उसमें भो इन्हें तीर्थंकर (तित्थकर) कहा गया है। इसी प्रसंग में भगवान बुद्ध ने अरक का उपदेश कैसा था वर्णन किया है। उनका उपदेश था कि सूर्य के निकलने पर जैसे घास पर स्थित ओस बिन्दु तत्काल विनष्ट हो जाते हैं, वैसे ही मनुष्य का यह जीवन भी मरणशील होता है इस प्रकार ओस बिन्दु को उपमा देकर जीवन की क्षणिकता" बताई गई है। उत्तराध्ययन में भी एक गाथा इसी तरह को उपलब्ध है
"कुसगे जह ओस बिन्दुए थोवं चिट्ठइ लंबमाणए ।
एवं मणुयाण जीवियं समयं गोयम मा पमायए ।"
इसमें भी जीवन की क्षणिकता के बारे में कहा गया है। अतः भगवान् बुद्ध द्वारा वणित अरक का हम जैन परम्परा के अठारहमें तीर्थकर अर के साथ कुछ मेल बैठा सकते हैं या नहीं यह विचारणीय है। जैनशास्त्रों के आधार से अर को आयु ८४००० वर्ष मानी गई है और उनके १. समवायांग, गा० १५७ । २. कल्पसूत्र १८७, आ० नि० २५८-२६३, ३०५, ३०७। ३. आवश्यकनियुक्ति, २५८ । ४. "भूपपुव्वं भिक्खवे सुनेत्तो नाम सत्था अहोसितित्थकरो कामेसु वीतरागो....
मुगपक्ख ...अरनेमि....कुद्दालक ...हत्थिपाल....जोतिपाल....अरको नाम सत्था अहोसि तित्थकरो कामेसु वीतरागो। अरकस्स सोपन, भिक्खवे सत्थुनो अनेकानि सावकसतानि अहेतु ।"
-अंगुत्तर निकाय भा० ३, पृ० २५६-२५७ ५. अंगुत्तर निकाय, भाग ३, अरकसुत्त, पृ० २५७-५८ । ६. उत्तराध्ययन अ०१०। .
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