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________________ तीर्थंकर की अवधारणा : ७७ नायक राजा मेघरथ और राजा शिवि के नामों में भिन्नता है । किन्तु कथा की विषयवस्तु और प्रयोजन अर्थात् प्राणी रक्षा दोनों में समान है । १७. कुन्थु कुन्थुनाथ को जैन परम्परा में सत्रहवाँ तीर्थंकर माना गया है । इनके पिता का नाम सूर्य एवं माता का नाम श्री और जन्मस्थान गजपुर अर्थात् हस्तिनापुर माना गया है । इनके शरीर की ऊँचाई ३५ धनुष और वर्ण कांचन बताया गया है । इनको तिलक वृक्ष के नीचे कठिन तपस्या के पश्चात् केवलज्ञान प्राप्त हुआ था । अपनी ९५ हजार वर्ष की आयु पूर्ण करने के बाद इन्होंने भो सम्मेतशिखर पर निर्वाण प्राप्त किया । ५ इनके संघ में ६० हजार साधु एवं ६० हजार ६ सौ साध्वियों के होने का उल्लेख है ।' त्रिषष्टिशलाका पुरुषचरित्र में इनके दो पूर्वभवों - सिंहावह राजा और अहमिन्द्र देव का उल्लेख है । इनके विषय में अन्य परम्पराओं में कोई उल्लेख नहीं मिलता है । १८. अरनाथ अरनाथ वर्तमान अवसर्पिणी काल के अट्ठारहवें तीर्थंकर माने गये हैं । इनके पिता का नाम सुदर्शन एवं माता का नाम श्रीदेवी और जन्मस्थान हस्तिनापुर माना गया है।' इनके शरीर की ऊँचाई ३० धनुष और रंग स्वर्णिम बताया गया है ।" इन्होंने जीवन के अन्तिम चरण में संन्यास ग्रहण कर तीन वर्ष तक कठोर तपस्या की, तत्पश्चात् सर्वज्ञ बने । १° इनको १. समवायांग गा० १५७, १५८, आ० नि० ३७१, ३७४, ३८४, ३९८, ३९९, ४१८, विशेषावश्यकभाष्य १७५९ । २. समवायांग, १५८ । ३. वही, ३५, आ० नि० ३८०, ३७७ । ४. वही, १५७ । ५. वही, ९५, आ० नि० २७२-३०५, ३०७ । ६. आ० नि० २५८ । ७. समवायांग, १५७, स्थानांग, ४११ वि० भा० १७५९, आ० नि०, ३७१, ४१८, ४२१, १०९५ । ८. समवायांग, गा० १५७-१५८, आ० नि० ३८३, ३९८-९९ । ९. वही, ३० आ०नि० ३८०, ३९३ । " १०. आवश्यकनियुक्ति २२४, २३८ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002127
Book TitleTirthankar Buddha aur Avtar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Gupta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1988
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
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