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________________ - तीर्थंकर की अवधारणा : ७३ शिखर पर निर्वाण प्राप्त हुआ था। इनके संघ में ८४ हजार भिक्षु और १ लाख ६ हजार भिक्षुणियाँ थीं।२ त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र में इनके दो पूर्वभवों-नलिनीगुल्म राजा और ऋद्धिमान देव का उल्लेख हुआ है। अन्य परम्पराओं में इनका भी उल्लेख उपलब्ध नहीं है। १२. वासुपूज्य वासुपूज्य वर्तमान अवसर्पिणी काल के बारहवें तीर्थकर माने जाते हैं। इनके पिता का नाम वसुपूज्य एवं माता का नाम जया था तथा इनका जन्मस्थान चम्पा माना गया है। इनके शरीर की ऊँचाई ७० धनुष बताई गई है। इनके शरीर का वर्ण लाल बताया गया है। इन्होंने भी तपश्चरण कर पाटला वृक्ष के नीचे केवलज्ञान प्राप्त किया था। इनकी शिष्य सम्पदा में ७२ हजार भिक्षु और एक लाख ३ हजार भिक्षुणियाँ थीं। त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र में इनके दो पूर्वभवों-पद्मोत्तर राजा और ऋद्धिमान देव का उल्लेख मिलता है । अन्य परम्पराओं में इनका भी उल्लेख नहीं मिलता है । १३. विमल __ जैन परम्परा में विमल को तेरहवाँ तीर्थंकर माना गया है। इनके पिता का नाम कृतवर्मा एवं माता का नाम श्यामा और जन्मस्थान काम्पिल्यपुर माना गया है ।१° इनके शरीर की ऊँचाई साठ धनुष और रंग कांचन बताया गया है ।१ इन्होंने भी अपने जीवन के अन्तिम चरण १. आवश्यकनियुक्ति, ३०४, ३०७ । २. वही, २५७, २६१ । ३. समवायांग, गा० १५७; विशेषावश्यकभाष्य १६५७, १७५८; आ० नि०, ३७०, १०९२। ४. वही, १५७; आवश्यकनि० ३८३, ३८५, ३८८ । ५. वही, गा० ७०; आ० नि० ३७९ । ६. आवश्यकनियुक्ति, ३७७ । ७. समावायांग, गा० १५७ । ८. वही, १५७; आवश्यकनि० २५७, २६१ । ९. समवायांग, गा० १५७; वि० आ० भा० १७५८; आ० नि० ३७१, १०९३ । १०. वहो, १५७; आ० नि० ३८२, ३८८ । ११. वही, ६०; आ० नि० ३७९, ३७६ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002127
Book TitleTirthankar Buddha aur Avtar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Gupta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1988
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
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