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________________ ७४ : तीर्थकर, बुद्ध और अवतार : एक अध्ययन में कठिन तपस्या को और जम्बू वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त किया।' अपनी साठ लाख वर्ष की आयु पूर्ण कर अन्त में सम्मेतशिखर पर निर्वाण प्राप्त किया। इनके संघ में ६८ हजार साध एवं एक लाख एक सौ आठ साध्वियों के होने का उल्लेख प्राप्त होता है । त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र में इनके दो पूर्वभवों-पद्मसेन राजा और ऋद्धिमान देव का उल्लेख हुआ है। इनका भी उल्लेख अन्य परम्पराओं में उपलब्ध नहीं है। १४. अनन्त अनन्त जैन परम्परा के चौदहवें तीर्थंकर माने गये हैं। इनके पिता का नाम सिंहसेन एवं माता का नाम सुयशा और जन्मस्थान अयोध्या माना गया है। इनके शरीर की ऊँचाई ५० धनुष और वर्ण कांचन बताया गया है। इनको अशोक वृक्ष के नीचे केवलज्ञान प्राप्त हुआ था। इन्होंने ३० लाख वर्ष की आयु पूर्ण कर निर्वाण लाभ किया । इनकी शिष्य सम्पदा में ६६ हजार भिक्षु और एक लाख आठ सौ भिक्षुणियों के होने का उल्लेख है। त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र में इनके दो पूर्वभवों-पद्मरथ राजा और पुष्पोत्तर विमान में बीस सागरोपम की स्थिति वाले देव का उल्लेख है। इनका उल्लेख हमें अन्य परम्पराओं में नहीं मिलता है । १५. धर्म धर्म वर्तमान अवसर्पिणी काल के पन्द्रहवें तीर्थंकर माने गए हैं । इनके पिता का नाम भानु एवं माता का नाम सुव्रता और जन्मस्थान रत्नपुर माना गया है। इनके शरीर को ऊँचाई ४५ धनुष और वर्ण १. समवायांग, गा० १५७ । २. कल्पसूत्र, १९२, आ० नि० २७२-३२५, ३२६ । ३. समवायांग, गा० १५७ । ४. वही, १५७, विशेषावश्यकभा० १७५८ । ५. वही, १५७; आ० नि० ३८६, ३८८ । ६. वही, ५०, आ० नि० ३७९, ३७७ । ७. वही, १५७ । ८. आवश्यकनियुक्ति, २७२-३०५ । ९. वही, २५६ । १०. समवायांग, गा० १५७, विशेषावश्यकभाष्य १७५९, आ० नि० १०९४ ।। ११. वही, १५७, आ० नि० ३८३, ३८६ ३८८ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002127
Book TitleTirthankar Buddha aur Avtar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Gupta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1988
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
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