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________________ तीर्थकर की अवधारणा : ६९ पुरुषचरित्र में इनके दो पूर्वभवों-महाबल राजा और अनुत्तर स्वर्ग के देव का उल्लेख हुआ है। ५. सुमति सुमति वर्तमान अवसर्पिणो काल के पाँचवें तीर्थंकर माने गये हैं।' इनके पिता का नाम मेघ एवं माता का नाम मंगला तथा इनका जन्म स्थान विनय नगर माना गया है। इनके शरीर की ऊँचाई ३०० धनुष और वर्ण कांचन माना गया है। इन्होंने जीवन की अन्तिम सन्ध्या वेला में संन्यास ग्रहण किया था और १२ वर्ष की कठोर साधना के पश्चात् प्रियंगु वृक्ष के नीचे केवलज्ञान प्राप्त किया था। इन्होंने अपनी ४० लाख पूर्व वर्ष को सर्व आयु में १० लाख पूर्व वर्ष कुमारावस्था और २९ लाख पूर्व वर्ष गृहस्थ जीवन और १ लाख पूर्व वर्ष संन्यास धर्म का पालन किया। इनकी शिष्यसम्पदा में ३ लाख २० हजार भिक्षु और ५ लाख ३० हजार भिक्षुणियां थीं। त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र में इनके दो पूर्वभवों-पुरुषसिंह राजकुमार और ऋद्धिशाली देव का उल्लेख हुआ है। अन्य परम्पराओं में हमें इनका कोई उल्लेख नहीं मिलता है। ६. पद्मप्रभ जैन परम्परा में पद्मप्रभ छठवें तीर्थंकर के रूप में माने जाते हैं।' इनके पिता का नाम धर एवं माता का नाम सुसीमा था तथा इनका जन्म स्थान कौशाम्बी नगर माना गया है। इनके शरीर की ऊँचाई २५० धनुष एवं वर्ण लाल बताया गया है। इन्होंने कठिन तपश्चरण कर छत्रांग वृक्ष के नीचे केवल ज्ञान प्राप्त किया था। इन्होंने अपनी ३० लाख पूर्व वर्ष १. समवायांग गा० १५७; विशेषावश्यकभाष्य १६६४, १७५८ । २. वही, १०४, १५७; आवश्यकनियुक्ति ३८३, ३८५, ३८७ । ३. आवश्यकनियुक्ति ३७६, ३७८ । ४. समवायांग गा० १५७ । ५. आवश्यकनियुक्ति ३०३, ३०७, ३११, २७२-३०५ । ६. कल्पसूत्र, १९९; आवश्यकनियुक्ति, १०८९ । ७. समवायांग गा० १५७; आवश्यकनियुक्ति, ३८२-३८७ ८. वहो, १०३; आवश्यक नियुक्ति, ३७६, ३७८ । ९. वही, १५७ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002127
Book TitleTirthankar Buddha aur Avtar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Gupta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1988
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
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