SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 87
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७० : तीर्थंकर, बुद्ध और अवतार : एक अध्ययन की आयु में साढ़े इक्कीस लाख पूर्व वर्ष गृहस्थ धर्म और एक लाख पूर्वं वर्ष तक मुनि धर्मं का पालन किया । " थीं । इनके संघ में ३ लाख ३० हजार मुनि एवं ४ लाख २० हजार साध्वियाँ अन्य परम्पराओं में इनका भी कोई उल्लेख उपलब्ध नहीं है । वैसे पद्म राम का एक नाम है किन्तु इनकी राम से कोई समरूपता नहीं दिखाई देती है । त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र में इनके दो पूर्वभवों- अपराजित महाराजा और ग्रैवेयक देव का उल्लेख हुआ है । ७. सुपार्श्व सुपार्श्व वर्तमान अवसर्पिणी काल के सातवें तीर्थंकर माने गये हैं । इनका जन्म वाराणसी के राजा प्रतिष्ठ की रानी पृथ्वी की कुक्षि से माना गया है । इनके शरीर को ऊँचाई २०० धनुष और वर्ण स्वर्णिम माना गया है ।" इन्हें ९ माह की कठिन तपस्या के पश्चात् शिरीष वृक्ष के नीचे केवलज्ञान प्राप्त हुआ और २० लाख पूर्व वर्ष की आयु पूर्ण करने के पश्चात् सम्मेतशिखर पर निर्वाण प्राप्त हुआ । इनके संघ में ३ लाख मुनि और ४ लाख ३० त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र में इनके दो पूर्वभवों अहमिन्द्र देव का उल्लेख हुआ है । ८. चन्द्रप्रभ जैन परम्परा में वर्तमान अवसर्पिणी काल के आठवें तीर्थंकर चन्द्रप्रभ माने जाते हैं । इनके पिता का नाम महासेन और माता का नाम लक्षणा १९ हजार साध्वियाँ थीं । " नन्दिसेन राजा और १. आवश्यकनियुक्ति ३०२-३०६ । २. वही, २५६-२६६, २७२- ३०५ । ३. समवायांग गा० १५७; विशेषावश्यकभाष्य १७५८; आवश्यकनियुक्ति, ५०९० । ४. वही, १५७; आवश्यकनियुक्ति ३८२, ३८५, ३८७ ॥ ५. वही, १०१; आवश्यक नियुक्ति ३७६ । ६. समवायांग गाथा १५७ । ७. आवश्यक नियुक्ति, ३०३, ३०७, ३०९ ॥ ८. वही, २५७, २६१ ॥ ९. कल्पसूत्र, १९७; आवश्यकनियुक्ति १०९० । Jain Education International For Private & Personal Use Only 445 www.jainelibrary.org
SR No.002127
Book TitleTirthankar Buddha aur Avtar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Gupta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1988
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy