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तीर्थंकर की अवधारणा : ६७
मञ्जुश्रीमूलकल्प में भी नाभि पुत्र ऋषभ और उनके पुत्र भरत का उल्लेख उपलब्ध है ।'
२. अजित
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अजित जैन परम्परा के दूसरे तोर्थंकर माने जाते हैं । इनके पिता का नाम जितशत्रु और माता का नाम विजया था तथा इनका जन्मस्थान अयोध्या माना गया है । इनका शरीर ४०० धनुष ऊँचा और कांचन वर्ण बताया गया है। इन्होंने भी अपने जोवन के अन्तिम चरण में संन्यास - ग्रहण कर १२ वर्ष तक कठिन तपस्या की, तत्पश्चात् सर्वज्ञ बने ।" अपनी ७२ लाख पूर्व वर्ष की सर्व आयु में इन्होंने ७१ लाख पूर्व वर्ष गृहस्थ धर्म और १ लाख पूर्व वर्ष संन्यास धर्म का पालन किया । इनके संघ में १ लाख मुनि और ३ लाख ३० हजार साध्वियाँ थीं । त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र में इनके पूर्वभवों का उल्लेख है और इन्हें सगर चक्रवर्ती का चचेरा भाई बताया गया है ।
बौद्ध परम्परा में अजित थेर का नाम मिलता है किन्तु इनकी तोर्थंकर अजित से कोई समानता परिलक्षित नहीं होती है । इसी प्रकार बुद्ध के समकालीन तीर्थंकर कहे जाने वाले ६ व्यक्तियों में एक अजितकेशकम्बल भी हैं किन्तु ये महावीर के समकालीन हैं जबकि दूसरे तीर्थंकर अजित महावीर के बहुत पहले हो चुके हैं। डॉ० राधाकृष्णन् की सूचनानुसार ऋग्वेद में भी अजित का नाम आता है-ये प्राचीन हैं अतः इनकी तीर्थंकर अजित से एकरूपता की कल्पना की जा सकती है । किन्तु यहाँ भी मात्र नाम की एकरूपता के अतिरिक्त अन्य कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं है।
१. “ प्रजापतेः सुतोनाभि तस्यापि आगमुच्यति । नाभिनो ऋषभ पुत्रो वै सिद्ध कर्म दृढव्रतः ॥”
-- आर्यमञ्जुश्रीमूलकल्प, ३९०
२. नन्दीसूत्र १८
३. सम० १५७; आवश्यक नियुक्ति ३२३, ३८५, ३८७ । ४. समवायांग, गाथा १०७; आवश्यकनि० ३७८, ३७६ । ५. आवश्यकवृत्ति २०५-७ ।
६. आवश्यकनियुक्ति २७२, २७८, ३०३ ।
७. वही, २५६, २६० ।
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