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________________ तीर्थंकर को अवधारणा : ६५ चाहे हम शिव से करें या ऋषभ से करें बहुत अन्तर नहीं है। ऋषभ और शिव के संदर्भ में जो कथाएँ मिलती हैं उससे इतना स्पष्ट होता है कि दोनों वैदिक कर्म-काण्ड के विरोधी थे । दिगम्बर विद्वान् पं० कैलाशचन्द्र जी ने शिव और ऋषभ में समोकरण खोजने का प्रयत्न किया है। महाभारत में भी महादेव के नामों में शिव और ऋषभ दोनों का उल्लेख हुआ है। अथर्ववेद के १५ वें व्रात्य नामक काण्ड में एक-व्रात्य को महादेव भी कहा गया है । इससे सिद्ध होता है कि व्रात्यों, वातरशना मुनियों और शिश्नदेवों की कोई एक परम्परा थी, जो वैदिक काल में भी प्रचलित थी और यह परम्परा निश्चित हो वेद-विरोधी श्रमण धारा को थो। व्रात्य शब्द का अर्थ भो व्रतों का पालन करने वाला, त्यागी या घुमक्कड़ होता है । ये सभी बातें श्रमणों में पाई जाती हैं । पुनः अथर्ववेद में वात्यों को मागध कहा गया है, इससे भी यही सिद्ध होता है कि वे श्रमण परम्परा के ही लोग थे । यह सुनिश्चित सत्य है कि मगध श्रमणों का केन्द्र स्थल था। इन सब आधारों पर ऐसा लगता है कि श्रमणों की यही परम्परा विकसित होकर हिन्दू धर्म में शैवों अर्थात् शिव के उपासकों के रूप में और श्रमण परम्परा में ऋषभ के अनुयायियों के रूप में विकसित हुई। हिन्दू पुराणों में मार्कण्डेय पुराण, कूर्म पुराण, अग्नि पुराण, वायु पुराण, गरुड़ पुराण, ब्रह्माण्ड पुराण, विष्णु पुराण, स्कन्ध पुराण और श्रीमद्भागवत में जो ऋषभदेव का वर्णन उपलब्ध होता है उससे इतना तो निश्चित हो सिद्ध हो जाता है कि ऋषभ निश्चित ही एक ऐतिहासिक पुरुष रहे हैं। __ जैन परम्परा में ऋषभदेव की मूर्तियाँ तथा पूजा के प्रमाण हमें ईसा-पूर्व की प्रथम शताब्दी से मिलने लगते हैं। इस आधार पर हम यह कह सकते हैं कि ईसवी पूर्व में भी ऋषभदेव जैन परम्परा के तीर्थंकर माने जाते थे। जैन और वैदिक परम्परा में प्राचीन काल से ही उनकी उपस्थिति का जो संकेत मिलता है, वह इस बात का भी सूचक है कि वे एक ऐतिहासिक व्यक्ति थे और महावीर तथा पाश्र्व के पूर्व उनको श्रमण परम्परा जीवित थी । सम्भव है कि महावीर के सम्मुख ऋषभ और पार्श्व दोनों की परम्परा जीवित रही हो; महावीर ने पावं की परम्परा की अपेक्षा ऋषभ की परम्परा को अधिक महत्त्व दिया हो । आज हमारे पास आजीवक सम्प्रदाय का कोई ग्रन्थ उपलब्ध नहीं है For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002127
Book TitleTirthankar Buddha aur Avtar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Gupta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1988
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
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