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________________ ६४ : तीर्थकर, बुद्ध और अवतार : एक अध्ययन पुरातात्त्विक स्रोतों से भी ऋषभदेव के बारे में सूचनाएँ प्राप्त हुई हैं। डॉ० राखलदास बनर्जी द्वारा सिन्धुघाटी की सभ्यता की खोज में प्राप्त सील (महर) नं० ४४९ पर चित्र लिपि में कुछ लिखा हआ है। इसे श्री प्राणनाथ विद्यालंकार ने जिनेश्वरः "जिन-इ-इ-सरः' पढ़ा है। रामबहादुर चन्दा का कहना है कि सिन्धु घाटी से प्राप्त मुहरों में एक मूर्ति मथुरा के ऋषभदेव की खड्गासन मूर्ति के समान त्याग और वैराग्य के भाव प्रशित करती है । इस सील में जा मूर्ति उत्कीर्ण है, उसमें वैराग्य भाव तो स्पष्ट है ही, साथ ही साथ उसके नीचे के भाग में ऋषभदेव के. प्रतीक बैल का सद्भाव भी है।' डॉ० राधाकुमुद मुखर्जी ने सिन्धु-सभ्यता का अध्ययन करते हुए लिखा कि फलक १२ और ११८ आकृति ७ (मार्शल कृत मोहन-जो-दड़ो) काय त्सर्ग मुद्रा में खड्गासन में खड़े हुए देवताओं को सूचित करती है। यह मुद्रा जैन तीर्थंकरों की मूर्तियों से विशेष रूप से मिलती है। जैसेमथुग से प्राप्त तीर्थंकर ऋषभ की मूर्ति । महर संख्या एफ० जी० एच० फलक दो पर अंकित देवमूर्ति । एक बैल ही बना है। सम्भव है कि यह ऋषभ का प्रतीक रूप हो । यदि ऐसा हो, तो शेव-धर्म की तरह जैन धर्म का मूल भी ताम्रयुगीन सिन्धु सभ्यता तक चला जाता है। ___ डॉ. विसेन्ट ए० स्मिथ का कथन है कि मथुरा सम्बन्धी खोजों से यह फलत होता है कि जैन धर्म की तीर्थंकरों की अवधारणा ई० सन् के पूर्व में विद्यमान थी। ऋषभादि २४ तीर्थंकरों की मान्यता सुदूर प्राचीन काल में पूर्णतया प्रचलित थी। इस प्रकार ऋषभदेव को प्राचीनता इतिहास के साहित्यिक एवं पुरातात्त्विक दोनों साक्ष्यों से सिद्ध है। डॉ० एन० एन० बसु का मन्तव्य है कि ब्राह्मी लिपि का प्रथम आविष्कार सम्भवतः ऋषभदव न ही किया था। अपनी पुत्री के नाम पर इसका ब्राह्मी नाम रखा । • गवत में वे विष्णु के अष्टम अवतार के रूप में प्रख्यात हुए हैं। ऋषभ और शिव सिन्धु घाटी में मिली मूर्तियों और सीलों की देव मूर्ति का समीकरण १. डॉ० नेमिचन्द्रशास्त्री, तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा (सागर, १९७४), पृ०१४। २. हिन्दू सभ्यता (नई दिल्ली, १९५८) पृ० २३ । ३. द जैन स्तूप--मथुरा, प्रस्तावना, पृ० ६ । ४. हिन्दूविश्वकोश, जिल्द १, पृ० ६४ तथा जिल्द ३, पृ० ४४४ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002127
Book TitleTirthankar Buddha aur Avtar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Gupta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1988
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
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