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________________ तीर्थकर की अवधारणा : ५१ घटना-प्रसंग को लेकर लिखा गया है। किन्तु इस अध्याय में अरिष्टनेमि के विवाह-प्रसंग का भी उल्लेख है। २३वें अध्याय में मुख्य रूप से तीर्थंकर पाश्वं और महावीर की आचार सम्बन्धी विभिन्नताओं के उल्लेख मिलते हैं। किंतु उत्तराध्ययन में किसी तीर्थंकर का जीवनवृत्त नहीं दिया गया है। दशवेकालिक, अनुयोगद्वार और नन्दी में भी तीर्थंकरों के जीवनवृत्त नहीं हैं। कल्पसूत्र तीर्थंकरों के जीवनवृत्त को सूचित करने वाले आगमिक ग्रन्थों में कल्पसूत्र महत्त्वपूर्ण है । कल्पसूत्र अपने आप में कोई स्वतन्त्र ग्रन्थ नहीं है। यह दशाश्रुतस्कन्ध नामक छेदसूत्र का अष्टम अध्याय ही है। किन्तु इसके जिनचरित्र नामक खंड में महावीर के साथ-साथ पार्श्व, अरिष्टनेमि और ऋषभ के जीवनवृत्तों का भी संक्षिप्त विवरण मिलता है। अरिष्टनेमि से लेकर ऋषभ तक के बीच के तीर्थंकरों के नाम एवं उनके बीच की कालावधि का भी इसमें उल्लेख है। नियुक्ति एवं भाष्य श्वेताम्बर परम्परा के इन आगमिक ग्रन्थों के अतिरिक्त आवश्यकनियुक्ति एवं विशेषावश्यकभाष्य में भी तीर्थंकरों के सम्बन्ध में और उनके माता, पिता आदि के बारे में सूचनाएँ मिलती हैं। ____ आवश्यकनियुक्ति में तीर्थंकरों के पूर्वभव का भी सांकेतिक उल्लेख हुआ है । आवश्यकनियुक्ति तीर्थंकरों की जन्म तिथि का भी निर्देश करती है। इसमें तीर्थंकरों के वर्षीदान का उल्लेख है साथ ही यह भी बताया गया है कि किस तीर्थंकर ने कौमार्य अवस्था में दीक्षा ली और किसने बाद में । इसमें तीर्थंकरों के निर्वाण तप तथा निर्वाण तिथियों का भी उल्लेख मिलता है। तीर्थंकरों के शरीर की ऊँचाई आदि का उल्लेख स्थानांग एवं समवायांग में भी उपलब्ध है, किन्तु वह एकीकृत रूप में न होकर बिखरा हुआ है जब कि आवश्यकनियुक्ति में उसे एकीकृत रूप से प्रस्तुत किया गया है । यथा-आवश्यकनियुक्ति के अनुसार सभी तीर्थंकर स्वयं ही बोध प्राप्त करते हैं, लोकान्तिक देव तो उन्हें व्यवहार के कारण प्रतिबोधित करते हैं, सभी तीर्थंकर एक वर्ष तक दान देकर प्रव्रजित होते हैं । महावीर, अरिष्टनेमि, पार्श्व, मल्लि और वासुपूज्य को छोड़ अन्य सभी तीर्थंकरों ने राज्यलक्ष्मो का भोग करने के पश्चात् ही दीक्षा ली थी, जबकि अवशिष्ट पांच कौमार्य अवस्था में दीक्षित हुए थे । शान्ति, कुंथु और अर ये तीन तीर्थंकर चक्रवर्ती थे शेष सामान्य राजा। महावीर अकेले, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002127
Book TitleTirthankar Buddha aur Avtar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Gupta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1988
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
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