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५२ : तीर्थंकर, बुद्ध और अवतार : एक अध्ययन पार्श्व और मल्लि ३०० व्यक्तियों, वासुपूज्य-६०० व्यक्तियों, ऋषभ-४००० व्यक्तियों एवं शेष सभी १००० व्यक्तियों के साथ दीक्षित हुए थे। सुमति ने बिना किसी व्रत के साथ दोक्षा ग्रहण की, वासुपूज्य ने उपवास के साथ दीक्षा ग्रहण की, पार्श्व और मल्लि ने ३ उपवास के साथ दीक्षा ली और शेष सभी ने २ दिन के उपवास के साथ दीक्षा ली । ऋषभ वनिता से, अरिष्टनेमि द्वारका से और अन्य अपनी-अपनो जन्मभूमि में दीक्षित हुए थे। ऋषभ ने सिद्धार्थवन में, वासुपूज्य ने विहारगृह (वन) में, धर्मनाथ ने वप्पग्राम में, मुनि सुमति ने नीलगुफा में, पाश्र्व ने आम्रवन में, महावीर ने ज्ञातृवन में तथा शेष सभी तीर्थंकरों ने सहस्रआम्रवन में दीक्षा ग्रहण की। पार्श्व, अरिष्टनेमि, श्रेयांस, सुमति और मल्लि पूर्वाह्न में दीक्षित हुए। ऋषभ, नेमि, पार्श्व और महावीर ने अनार्य भूमि में भी विहार किया, शेष सभी ने मगध, राजगृह आदि आर्य-भूमि में हो विहार किया ।
प्रथम तीर्थंकर को १२ अंग और शेष को ११ अंग का श्रुतलाभ रहा। प्रथम और अन्तिम तीर्थंकर ने पंचयाम का और शेष ने चातुर्याम का उपदेश दिया। प्रथम और अन्तिम तीर्थंकर में सामायिक और छेदोस्थापनीय ऐसे दो चारित्रों का विकल्प होता है जबकि शेष में सामायिक चारित्र ही होता है। इसमें २४ तोर्थंकरों के केवलज्ञान की तिथियों, नक्षत्रों एवं स्थलों को भी दिया गया है । २३ तीर्थंकरों को पूर्वाह्न में और महावीर को अपराण में ज्ञान प्राप्त हुआ। ऋषभ को पूरिमताल में, महावीर को ऋजपालिका नदी के किनारे और शेष ने जिस उद्यान में दीक्षा ली, उसी में केवल ज्ञान प्राप्त किया । पार्व, मल्लि और अरिष्टनेमि को तीन उपवास की तपस्या में, वासुपूज्य को एक उपवास में और शेष तीर्थंकरों को दो उपवास में ज्ञान प्राप्त हुआ। महावीर ने दूसरे समवसरण में तीर्थ की स्थापना को, जबकि शेष तीर्थंकरों ने प्रथम समवसरण में तीर्थ की स्थापना की। २४ तीर्थंकरों में से २३ तीर्थंकरों के, जितने गण थे उतने ही गणधर भी थे, परन्तु महावीर के गणों की संख्या ९ एवं गणधरों की संख्या ११ थी। इसके अतिरिक्त आवश्यकनिर्यक्ति में २४ तीर्थंकरों के माता-पिता के नाम, जन्मभूमि, वर्ण, प्रथम शिक्षा दाता, प्रथम भिक्षा स्थल, छद्मस्थ काल, श्रावक संख्या, कुमार काल, शरीर की ऊँचाई, एवं आयु प्रमाण आदि का भी विवरण प्रस्तुत किया गया है। आवश्यकचूर्णि में नियुक्ति विवरणों के अतिरिक्त महावीर और ऋषभ का जीवनवृत्त भो विस्तार से वर्णित है। आगमेतर कथा साहित्य
श्वेताम्बर परम्परा में २४ तीर्थंकरों के सम्बन्ध में विस्तृत जानकारी
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