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________________ ४२ : तीर्थंकर, बुद्ध और अवतार : एक अध्ययन ९. स्फटिकमणि के बने हुए पादपीठ सहित उनका स्वच्छ सिंहासन होता है। १०. उनके आगे हमेशा अनेक लघुपताकाओं से वेष्ठित एक इन्द्रध्वज पताका चलती है। ११. जहाँ-जहाँ अरिहन्त भगवान् ठहरते हैं अथवा बैठते हैं वहाँ-वहाँ यक्ष देव सछत्र, सघट, सपताक तथा पत्र-पुष्पों से व्याप्त अशोक वृक्ष का निर्माण करते हैं। १२. उनके मस्तक के पीछे दशों दिशाओं को प्रकाशित करने वाला तेज प्रभामंडल होता है। साथ ही जहाँ भगवान् का गमन होता है, वहाँ निम्नलिखित परिवर्तन हो जाते हैं१३. भूमिभाग समान तथा सुन्दर हो जाता है। १४. कण्टक अधोमुख हो जाते हैं। १५. ऋतुएँ सुखस्पर्श वाली हो जाती हैं। १६. समवर्तक वायु के द्वारा एक योजन तक के क्षेत्र की शुद्धि हो जाती है । १७. मेघ द्वारा उपचित बिन्दुपात से रज और रेणु का नाश हो जाता है । १८. पंचवर्णवाला सुन्दर पुष्प-समुदाय प्रकट हो जाता है। १९. (अ) भगवान् के आसपास का परिवेश अनेक प्रकार की धूप के धुंए से सुगन्धित हो जाता है। (ब) अमनोज्ञ शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गन्ध का अभाव हो जाता है। २०. (अ) भगवान् के दोनों ओर आभूषणों से सुसज्जित यक्ष चमर डुलाते हैं। (ब) मनोज्ञ शब्दादि का प्रादुर्भाव हो जाता है। २१. उपदेश करने के लिए अरिहन्त भगवान् के मुख से एक योजन को उल्लंघन करने वाला हृदयंगम स्वर निकलता है। २२. भगवान् का भाषण अद्धमागधी भाषा में होता है । २३. भगवान् द्वारा प्रयुक्त भाषा, आर्य, अनार्य, द्विपद, चतुष्पद आदि समस्त प्राणिवर्ग की भाषा के रूप में परिवर्तित हो जाती है। २४. बद्ध-वैर वाले देव, असुर, नाग, सुपर्ण, यक्ष, गंधर्व आदि भगवान् के पादमूल में प्रशान्तचित्त होकर धर्म-श्रवण करते हैं। २५. अन्य तीर्थ वाले प्रावचनिक (विद्वान् ) भी भगवान् को नमस्कार करते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002127
Book TitleTirthankar Buddha aur Avtar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Gupta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1988
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
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