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तीर्थकर की अवधारणा : ४१ शब्द का अर्थ तीर्थंकर किया है ।' समवायांग की इस सूची में पूर्वोक्त विविध वर्गीकरणों के उप-प्रकार समाहित हैं। १. तीर्थंकरों के सिर के बाल, दाढ़ी तथा मूंछ एवं रोम और नख
बढते नहीं हैं, हमेशा एक ही स्थिति में रहते हैं। २. उनका शरीर हमेशा रोग तथा मल से रहित होता है । ३. उनका मांस तथा खून गाय के दूध के समान श्वेत वर्ण का
होता है। ४. उनका श्वासोच्छ्वास कमल के समान सुगन्धित होता है। ५. उनका आहार और नोहार (मूत्रपुरीषोत्सर्ग ) दृष्टिगोचर
नहीं होता। ६. वे धर्म-चक्र का प्रवर्तन करते हैं । ७. उनके ऊपर तीन छत्र लटकते रहते हैं । ८. उनके दोनों ओर चामर लटकते हैं ।
दसवण्णेणं कुसुमेणं जाणुस्सेहप्पमाणमित्ते पुप्फोवयारे किज्जइ १८, अमगुण्णाणं सद्द-फरिस-रस-रूव-गंधाणं अवकरिसो भवइ १९, मणुण्णाणं सदफरिस-रस-रूव-गंधाणं पाउन्भावो भवइ २०, पच्चाहरओ वि य णं हिययगमणीओ जोयणनीहारी सरो २१, भगवं च णं अद्धमागहीए भासाए धम्ममाइक्खइ २२, सा वि य णं अद्धमागही भासा भासिज्जमाणी तेसि सव्वेसि आरियमणारियाणं दुप्पय-चउप्पअ-मिय-पसु-पक्खि-सरीसिवाणं अप्पणो हियसिव-सुहय-भासत्ताए परिणमइ २३, पुन्वबद्धवेरा वि य णं देवासुर-नाग-सुवण्णजक्ख-रक्खस-किंनर-किंपुरिस-गरुल-गंधव्व-महोरगा अरहओ पायमूले पसंतचित्तमाणसा धम्म निसामंति २४, अण्णउत्थियपावयणिया वि य णं आगया वंदंति २५, आगया समाणा अरहओ पायमले निप्पलिवयणा हवंति २६. जओ जओ वि य णं अरहंतो भगवंतो विहरंति तओ तओ वि य णं जोयणपणवीसाएणं ईती न भवइ २७, मारी न भवइ २८, सचक्कं न भवइ २९, परचक्कं न भवइ ३०, अइवुट्ठी न भवइ ३१, अणावुट्ठी न भवइ ३२, दुभिक्खं न भवइ ३३, पुन्वुप्पण्णा वि य णं उप्पाइया वाहीओ खिप्पमेव उवसंमति ३४ ।
-समवायांग सूत्र ( सं. मधुकर मुनि) समवाय ३४ १. समवायांग टीका अभयदेव सूरि, पृ० ३५
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