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४० : तीर्थकर, बुद्ध और अवतार : एक अध्ययन ५. आकाश में रत्नमय धर्मध्वज । ६. सुवर्ण कमलों पर चलना। ७. समवसरण में रत्न, सुवर्ण और चाँदी के तीन परकोटे । ८. चतुर्मुख उपदेश । ९. चेत्य वृक्ष। १०. कण्टकों का अधोमुख होना । ११. वृक्षों का झुकना। १२. दुन्दुभि बजना। १३. अनुकूल वायु । १४. पक्षियों का प्रदक्षिणा देना । १५. गन्धोदक की वृष्टि । १६. पाँच वर्गों के पुष्पों की वृष्टि । १७. नख और केशों का नहीं बढ़ना । १८. कम से कम एक कोटि देवों का पास में रहना । १९. ऋतुओं का अनुकूल होना ।
दिगम्बर परम्परानुसार १० सहज अतिशय, १० कर्मक्षयज अतिशय और १४ देवकृत अतिशय माने गये हैं।
समवायांगसूत्र में बुद्ध ( तीर्थकर ) के निम्न चौबीस अतिशय या विशिष्ट गुण माने गये हैं। समवायांग के टीकाकार अभयदेव सूरि ने बुद्ध
१. चोत्तीसं बुद्धाइसेसा पण्णता। तं जहा-अवट्ठिए केस-मंसु-रोम-नहे १, निरामया
निरुवलेवा गायलट्ठी २, गोक्खीरपंडुरे मंससोणिए ३, पउमुप्पलगंधिए उस्सासनिस्सासे ४, पच्छन्ने आहार-नीहारे अदिस्से मंसचक्खुणा ५, आगासगयं चक्कं ६, आगासगयं छत्तं ७, आगासगयाओ सेयवरचामराओ ८, आगासफालिआमयं सपायपीढं सीहासणं ९, आगासगओ कुडभीसहस्सपरिमंडिआभिराओ इंदज्झओ पुरओ गच्छइ १०, जत्थ जत्थ वि य णं अरहता भगवंतो चिट्ठति वा निसीयंति वा तत्थ तत्थ वि य णं जक्खा देवा संछन्नपत्तपुप्फ-पल्लवसमाउलो सच्छत्तो सज्झओ सघंटो सपडागो असोगवरपायवो अभिसंजायइ ११, ईसि पिट्ठओ मउडठाणंमि तेयमंडलं अभिसंजाइ, अंधकारे वि य णं दस दिसाओ पभासेइ १२, बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे १३, अहोसिरा कंटया भवंति १४, उउविवरीया सुहफासा भवंति १५, सीयलेणं सुहफासेणं सुरभिणा मारुएणं जोयणपरिमंडलं सव्वओ समंतासंपमज्जिज्जइ १६,जुत्तफुसिएणं मेहेण य निहयरयरेणूयं किज्जइ.१७, जल-थलयभासुरपभूतेणं विटट्ठाइणा
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