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________________ ३८ : तीर्थकर, बुद्ध और अवतार : एक अध्ययन कैवल्य महोत्सव मनाते हैं। उस समय देवता तीर्थकर की धर्म सभा के लिए समवसरण की रचना करते हैं।' ५. निर्वाणकल्याणक-तीर्थंकर के परिनिर्वाण प्राप्त होने पर भी देवों द्वारा उनका दाह संस्कार कर परिनिर्वाणोत्सव मनाया जाता है। ___ इस प्रकार जैनपरम्परा में तीर्थंकरों के उपर्युक्त पंचकल्याणक माने गये हैं। (ब) अतिशय सामान्यतया जैनाचार्यों ने तीर्थंकरों के चार अतिशयों का उल्लेख किया है। १-ज्ञानातिशय २-वचनातिशय ३-अपायापगमातिशय ४-पूजातिशय १. ज्ञानातिशय केवलज्ञान अथवा सर्वज्ञता की उपलब्धि ही तीर्थकर का ज्ञानातिशय माना गया है। दूसरे शब्दों में तीर्थंकर सर्वज्ञ होता है वह सभी द्रव्यों की भूतकालिक, वर्तमानकालिक तथा भावी पर्यायों का ज्ञाता होता है । दूसरे शब्दों में वह त्रिकालज्ञ होता है । तीर्थंकर का अनन्तज्ञान से युक्त होना ही ज्ञानातिशय है । २. वचनातिशय-अबाधित और अखण्डनीय सिद्धान्त का प्रतिपादन तीर्थङ्कर का वचनातिशय कहा गया है। प्रकारान्तर से इन वचनातिशय के ३५ उपविभाग किये गये हैं। ३. अपायापगमातिशय-समस्त मलों एवं दोषों से रहित होना अपायापगमातिशय है। तीर्थङ्कर को रागद्वेषादि १८ दोषों से रहित माना गया है। ४. पूजातिशय-देव और मनुष्यों द्वारा पूजित होना तीर्थंकर का पूजातिशय है। जैनपरम्परा के अनुसार तीर्थंकर को देवों एवं इन्द्रों द्वारा पूजनीय माना गया है। १. देखे-आचारांग २०१५।१४०-४२, कल्पसूत्र २११ २. कल्पसूत्र १२४ ३. "अनन्तविज्ञानमतीतदोषमबाध्यसिद्धान्तममर्त्यपूज्यम् ॥" -अन्ययोगव्यवच्छेदिका १ ( हेमचन्द्र )। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002127
Book TitleTirthankar Buddha aur Avtar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Gupta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1988
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
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