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________________ तीर्थकर की अवधारणा : ३७ (अ) तीर्थंकरों के पंचकल्याणक तीर्थकर और सामान्यकेवली में जैनपरम्परा जिस आधार पर अन्तर करती है, वह पंचकल्याणक की अवधारणा है । जहाँ तीर्थंकर के पंचकल्याणक महोत्सव होते हैं वहाँ सामान्यकेवली के पंचकल्याणक महोत्सव नहीं होते। तीर्थंकरों के पंचकल्याणक निम्न हैं १. गर्भकल्याणक-तीर्थंकर जब भी माता के गर्भ में अवतरित होते हैं तब श्वेताम्बर परंपरा के अनुसार माता १४ और दिगम्बर परंपरा के अनुसार १६ स्वप्न देखती है तथा देवता और मनुष्य मिलकर उनके गर्भावतरण का महोत्सव मनाते हैं । २ । २. जन्मकल्याणक-जैन मान्यतानुसार जब तीर्थकर का जन्म होता है, तब स्वर्ग के देव और इन्द्र पृथ्वी पर आकर तीर्थंकर का जन्मकल्याणक महोत्सव मनाते हैं और मेरु पर्वत पर ले जाकर वहाँ उनका जन्माभिषेक करते हैं। ३. दीक्षाकल्याणक-तीर्थंकर के दीक्षाकाल के उपस्थित होने के पूर्व लोकान्तिक देव उनसे प्रव्रज्या लेने की प्रार्थना करते हैं। वे एक वर्ष तक करोड़ों स्वर्ण मुद्राओं का दान करते हैं। दीक्षा तिथि के दिन देवेन्द्र अपने देवमंडल के साथ आकर उनका अभिनिष्क्रमण महोत्सव मनाते हैं। वे बिशेष पालकी में आरूढ़ होकर वनखण्ड की ओर जाते हैं जहाँ अपने वस्त्राभूषण का त्यागकर तथा पंचमष्ठिलोच कर दीक्षित हो जाते हैं। नियम यह है कि तीर्थंकर स्वयं ही दीक्षित होता है किसी गुरु के समीप नहीं। ४. कैवल्यकल्याणक-तीर्थंकर जब अपनी साधना द्वारा कैवल्य ज्ञान प्राप्त करते हैं उस समय भी स्वर्ग से इन्द्र और देवमंडल आकर १. (अ) पंच महाकल्लाणा सव्वेसि जिणाण हवंति नियमेण । --पंचासक (हरिभद्र) ४२४ (ब) "जस्स कम्ममुदएण जीवो पंचमहाकल्लाणाणि पाविदूण तित्थ दुवालसंगं कुणदि तं तित्थयरणाम । -धवला १३१५, १०११३६६७ -गोम्मटसार, जीवकाण्ड, टीका ३८११६ २. कल्पसूत्र १५-७१ ३. वही ९६; आचारांग २।१५।११, २।१५।२६-२९ ४. वही ११०-११४; आचारांग २।१५।१-६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002127
Book TitleTirthankar Buddha aur Avtar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Gupta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1988
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
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