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३६ : तीर्थंकर, बुद्ध और अवतार : एक अध्ययन सम्बन्ध में कुछ उल्लेख मिलता है, किन्तु उसमें उन्हें एक उग्र तपस्वी के रूप में प्रस्तुत किया गया है और उनके जीवन के साथ किसी अलौकिकता को नहीं जोड़ा गया, किन्तु उसी ग्रन्थ के द्वितीय श्रुतस्कन्ध में और कल्पसूत्र में महावीर के जीवन के साथ अनेक अलौकिकताएँ जोड़ी गई हैं। तीर्थकर की माता उनकी गर्भावक्रान्ति के समय श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार १४ और दिगम्बर परम्परा के अनुसार १६ शभ स्वप्न देखती है। आचारांग में तीर्थंकर के गर्भ-कल्याणक का उल्लेख मिलता है, फिर भी वह किस प्रकार मनाया जाता है इसका विशेष विवरण तो टीकाग्रन्थों एवं परवर्तीसाहित्य में ही उपलब्ध होता है। यह भी मान्यता है कि तीर्थीकर माता की जिस योनि में विकसित होते हैं वह योनि अशुभ पदार्थों से रहित होती है । वे अशुचि से रहित निर्मल रूप से ही जन्म लेते हैं तथा देवता उनका जन्मोत्सव मनाते हैं। तीर्थंकर के जन्म के समय परिवेश शान्त रहता है, सुगन्धित वायु बहने लगती है, पक्षीगण कलरव करते हैं, उनके जन्म के साथ ही समस्त लोक में एक प्रकाश व्याप्त हो जाता है आदि । यह भी मान्यता है कि तीर्थंकरों के दीक्षा महोत्सव और कैवल्य महोत्सव का सम्पादन भी देवता करते हैं। उनके दीक्षा ग्रहण करने के पूर्व देवता अपार धनराशि उनके कोषागार में डाल देते हैं और वे प्रतिदिन एक करोड़ बावन लाख स्वर्ण मुद्राओं का दान करते हैं। सर्वज्ञता की प्राप्ति के पश्चात् देवता उनके लिए एक विशिष्ट समवसरण ( धर्मसभा-स्थल ) बनाते हैं, जिसमें बैठकर वे लोक-कल्याण हेतु धर्ममार्ग का प्रवर्तन करते हैं । इस प्रकार हम देखते हैं कि अति प्राचीन जैन ग्रन्थों यथा-आचारांग के प्रथम श्रत स्कन्ध में महावीर के जीवन के सम्बंध में किन्हीं अलौकिकताओं की चर्चा नहीं है। सूत्रकृतांग की वीर-स्तुति में भी मात्र उनको कुछ विशेषताओं का चित्रण है किन्तु उन्हें अलौकिक नहीं बनाया गया है। किन्तु आचारांग के द्वितीय श्रुतस्कन्ध में और कल्पसूत्र में महावीर एवं कुछ अन्य तीर्थंकरों के जन्मकल्याणक आदि की कुछ अलौकिकताओं के सम्बन्ध में सूचनाएँ प्राप्त होती हैं। फिर परवर्ती आगम साहित्य तथा कथा साहित्य में तो तीर्थंकर को पूर्णतया लोकोत्तर व्यक्ति बना दिया गया है, जिसको हम क्रमशः चर्चा करेंगे।
१. सूत्रकृतांग १६ २. देखें-आचारांग द्वितीय श्रुत स्कन्ध अध्ययन १५ में वर्णित महावीर चरित्र ३. देखें-कल्पसूत्र में वर्णित महावीर चरित्र
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