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________________ ३२ : तीर्थंकर, बुद्ध और अवतार : एक अवधारणा परन्तु परवर्ती जैन विद्वानों ने उनमें अन्तर किया है। उन्होंने शरीर सहित मुक्त अवस्था के दो भेद किये हैं । "वे अरिहंत जिनके विशेष पुण्य के कारण कल्याणक महोत्सव मनाये जाते हैं, तीर्थंकर कहलाते हैं । शेष सामान्य अर्हन्त कहलाते हैं । केवलज्ञान अर्थात् सर्वज्ञत्व से युक्त होने के कारण इन्हें केवली भी कहते हैं ।" " उपाध्याय अमरमुनिजी तीर्थंकर और अर्हत् का भेद स्पष्ट करते हुए लिखते हैं कि 'अनेक लोकोपकारी सिद्धियों के स्वामी तीर्थंकर होते हैं, जबकि दूसरे मुक्त होने वाले आत्मा ऐसे नहीं होते अर्थात् न तो वे तीर्थं - कर जैसे महान् धर्म प्रचारक ही होते हैं और न इतनी अलौकिक योगसिद्धियों के स्वामी ही । साधारण मुक्त जीव अपना आत्मिक विकास का लक्ष्य अवश्य प्राप्त कर लेते हैं, परन्तु जनता पर अपना चिरस्थायी एवं अक्षुण्ण आध्यात्मिक प्रभुत्व नहीं जमा पाते । यही एक विशेषता है जो तीर्थंकर और अन्य मुक्त - आत्माओं में भेद करती है ।२ अस्तु अर्हत् ( सामान्य केवली ) और तीर्थंकरों में अन्तर केवल इतना ही है कि अर्हत् स्वयं अपनी मुक्ति की कामना करते हैं और तीर्थंकर संसार-सागर से स्वयं पार होने के साथ-साथ दूसरों को भी पार कराते हैं । इसी विशेष गुण के कारण वे तीर्थंकर कहलाते हैं । ५. तीर्थंकर, गणधर और सामान्य केवली का अन्तर तीर्थंकर और सामान्य केवली के आदर्शों के इस द्विविध वर्गीकरण के अतिरिक्त आचार्य हरिभद्र ने अपने ग्रन्थ योगबिन्दु में स्वहित और लोकहित के आदर्शों के आधार पर एक त्रिविध वर्गीकरण प्रस्तुत किया है ---- तीर्थंकर - जो करुणा से युक्त है और सदैव परार्थं को ही अपने जीवन का लक्ष्य बनाता है, सत्वों के कल्याण की कामना ही जिसका एकमात्र कर्तव्य है, जो अपनी आध्यात्मिक पूर्णता को प्राप्त करने के पश्चात् ही सत्वहित के लिए धर्म - तीर्थ की स्थापना करता है, तीर्थंकर कहलाता है। १. जैनेन्द्र सिद्धान्तकोश भाग १, पृ० १४०, भाग २, पृ० १५७ २. जैनत्व को झांकी, ( उपाध्याय अमरमुनिजी ) पृ० ५३ ३. करुणादिगुणोपेतः, परार्थव्यसनी सदा । तथैव चेष्टते धीमान्, वर्धमान् महोदयः । तत्तत्कल्याणयोंगेन, कुर्वन्सत्वार्थमेव सः । तीर्थंकृत्वमवाप्नोति परं सत्वार्थसाधनम् ॥ 1 Jain Education International —योगविन्दु २८७-२८८ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002127
Book TitleTirthankar Buddha aur Avtar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Gupta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1988
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
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