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________________ २२ : तीर्थकर, बुद्ध और अवतार : एक अध्ययन कुल अपने नीड में निवास करते हैं, पर मानव पुंज ( ईसा ) के पास अपना सिर टिकाने तक के लिए कोई स्थान नहीं है" । इससे हम देखते हैं कि ईसा स्वयं त्यागी और वेराग्यवान् थे, इसलिए उन्होंने यही शिक्षा दी कि वैराग्य और त्याग ही मुक्ति का एकमेव मार्ग है। इसके अतिरिक्त मुक्ति का कोई और पथ नहीं है। ईसा ने अपनी अद्भुत दिव्य दृष्टि से जान लिया था कि सभी नरनारी, चाहे वे यहूदी हों या किसी अन्य जाति के हों, दरिद्र हों या धनवान्, साधु हों या पापात्मा; सभी में उनके ही समान अविनाशी आत्मा विद्यमान है। उनके जीवन का उद्देश्य सम्पूर्ण मानव जाति का कल्याण है । वे कहते हैं- "यह कुसंस्कारमय मिथ्या भावना छोड़ दो कि हम दीन हैं । यह न सोचो कि तुम पर गुलामों के समान अत्याचार किया जा रहा है, तुम पैरों तले रौंदे जा रहे हो, क्योंकि तुम में एक ऐसा तत्व विद्यमान है, जिसे पद-दलित या पीड़ित नहीं किया जा सकता, जिसका विनाश नहीं हो सकता।" तुम सब ईश्वर के पुत्र हो, अमर और अनादि हो। इस प्रकार ईसा ने अपनी वाणी से घोषणा की२-- "दुनिया के लोगों, इस बात को भलीभाँति जान लो कि स्वर्ग का राज्य तुम्हारे अभ्यन्तर में अवस्थित है"। "मैं और मेरे पिता अभिन्न हैं।" ईसा का एक मात्र उद्देश्य समग्र जगत् को परम ज्योतिर्मय परमेश्वर के निकट पहुँचने तक अग्रसर करते रहना था । ईश्वरीय पुत्र के रूप में ईसा ईश्वर के अंशावतार तो कहे ही जा सकते हैं। १४. इस्लाम धर्म और पैगम्बर इस्लाम का शाब्दिक अर्थ "ईश्वर के प्रति प्रणति (Submission to God)" है । यह धर्म मुख्य रूप से आत्मसमर्पण की शिक्षा देता है इस्लाम धर्म अनेकेश्वरवाद एवं मूर्ति पूजा का कट्टर विरोधी है । यह एकेश्वरवाद को मानता है । इस्लाम धर्म के संस्थापक हजरत मुहम्मद साहब थे । मुहम्मद साहब जिस समय पैदा हुये थे उस समय अरब में नैतिक और आध्यात्मिक आदर्श प्रायः नष्ट हो चुके थे तथा चारों ओर पापाचार का बोलबाला था। यह जन विश्वास है कि जब-जब धर्म की हानि होती है और अधर्म १. ईशदूत ईशा, पृ० १४ २. वही, पृ० १५ ३. मुहम्मद पैगम्बर की वाणी, पृ० ३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002127
Book TitleTirthankar Buddha aur Avtar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Gupta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1988
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
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