SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 38
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विषय प्रवेश : २१ देखा और तभी यह आकाशवाणी हुई, "यह मेरा पुत्र है, जिससे मैं अत्यधिक प्रसन्न हूँ। उसी समय से ईसा “ईश्वर-पुत्र" कहे जाने लगे। ईसाई धर्म में ईसा के साधनाकालीन जीवन के सम्बन्ध में कोई विशेष जानकारी उपलब्ध नहीं है, किन्तु यह माना गया है कि वे बपतिस्मा देने के बाद ४० दिनों तक अदृश्य रहे और उन्हें इबलिस (शैतान ) ने अनेक प्रकार के प्रलोभन दिए, किन्तु वे चिर जागरुक और सतर्क थे । अतः इबलिस या शैतान उनका कुछ भी नहीं बिगाड़ सका। तुलनात्मक दृष्टि से विचार करने पर हम पाते हैं-तीर्थंकर महावीर और गौतम बुद्ध के साधनाकालीन जीवन के सम्बन्ध में भी क्रमशः संगमदेव और मार के द्वारा दिए गये प्रलोभनों और कष्टों का उल्लेख है। वस्तुतः ऐसा लगता है कि जब मानवीय जीवन आध्यात्मिक विकास की ओर आगे बढ़ना चाहता है तो पाशविक शक्तियाँ उसे दबोचना चाहती हैं। महावीर, बुद्ध और ईसा के जीवन के यह संघर्ष वस्तुतः आध्यात्मिक सद्गुणों और पाशविक वृत्तियों के बीच के संघर्ष हैं। शैतान, संगमदेव या मार वस्तुतः मनुष्य को दुर्वासनाओं के ही प्रतीक हैं । हमारे सामाजिक एवं आध्यात्मिक जगत् में उत्थान-पतन का क्रम चलता रहता है । अतः विश्व के प्राणियों के कल्याण के लिए आदर्श पुरुष समय-समय पर जन्म लेते हैं । ईसा का जन्म भी ऐसे ही युग में हुआ था जिस समय यहूदी जाति पतन की ओर जा रही थी। इस प्रकार सभी महापुरुष अपने युग की मांग हैं, उनकी जाति का अतीत ही उनका निर्माण करता है । ईसा भी इसी के प्रतोक हैं। महापुरुष ईसा ने कहा था कि “यह जीवन (सब)कुछ नहीं है, इससे भी उच्च कुछ और है ।"२ ईसा धर्म के क्षेत्र में अत्यन्त व्यावहारिक थे। उन्हें इस नश्वर एवं क्षणभंगुर जगत् के ऐश्वर्य में विश्वास नहीं था । वे कहते थे कि यदि हम आदर्श का अनुगमन नहीं कर सकते, तो कम से कम हमें अपनी दुर्बलता को अवश्य स्वीकार कर लेना चाहिए।" एक श्रेष्ठ धर्माचार्य के जीवन और उपदेशों की सर्वश्रेष्ठ व्याख्या उसका स्वयं का जीवन ही होता है। ईसा ने स्वयं अपने विषय में कहा है-"लोमड़ियों और शृगालों के एक-एक माद होती है, नभचारी खग- . १. ईसामसीह की वाणी, पृ० २ २. ईशदूत ईसा, पृ० ११ ३. वही, पृ० १३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002127
Book TitleTirthankar Buddha aur Avtar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Gupta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1988
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy