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________________ विषय प्रवेश : १५ वे धर्ममार्ग के उपदेष्टा धर्मसंघ के नियामक तथा अन्य साधकों के लिए आदर्श रूप हैं । ९. बुद्धत्व की अवधारणा का विकास जिस प्रकार जैनधर्मं में ऐतिहासिक दृष्टि से तीर्थंकर की अवधारणा का क्रमिक विकास हुआ उसी प्रकार बौद्धधर्म में भी बुद्धत्व को अवधारणा का क्रमिक विकास हुआ है । सर्वप्रथम शाक्यपुत्र गौतम को बुद्ध मानने के साथ-साथ अतीत और अनागत बुद्धों को कल्पना विकसित हुई, फिर क्रमशः अतीत और अनागत बुद्धों की संख्या उनके जीवनवृत्त आदि का भी विकास हुआ। इन सब की चर्चा हमने बुद्धत्व की अवधारणा नामक अगले अध्याय में की है, वहाँ हमने यह भी बताने का प्रयत्न किया है कि जिस प्रकार जैनों में तीर्थंकर के जीवनवृत्त के साथ rofeera और चमत्कारपूर्ण बातें जुड़ती गई वैसा ही बौद्धधर्म में बुद्ध के साथ भी हुआ है । यहाँ तो हमारा उद्देश्य केवल यह सूचित करना है कि बुद्धत्व एवं बोधिसत्व की अवधारणाएँ बौद्धधर्म का प्राण है, क्योंकि उसी के आधार पर इस धर्म की मूल्यवत्ता एवं सामाजिक उपयोगिता को सिद्ध किया जा सकता है । १०. हिन्दू धर्म और अवतार जिस प्रकार जैनधर्म के प्रवर्तक के रूप में महावीर और बौद्ध धर्म के प्रवर्तक के रूप में बुद्ध को स्वीकार किया जाता है, उसी प्रकार हिन्दू धर्म के प्रवर्तक के रूप में किसी व्यक्ति विशेष को स्वीकार नहीं किया जाता है । यद्यपि यहाँ हमें यह स्मरण रखना चाहिए कि बौद्धों ने और जैनों ने भी परम्परागत रूप में महावीर अथवा बुद्ध को अपने धर्मसंघ का एक मात्र प्रवर्तक नहीं माना है । धार्मिक दृष्टि से उनकी यह मान्यता है कि इस संसार चक्र में अनादि काल से समय-समय पर तीर्थंकर और बुद्ध होते हैं और वे धर्ममार्ग का प्रवर्तन करते हैं । फिर भी ऐतिहासिक दृष्टि से 'बुद्ध और महावीर को क्रमशः बौद्ध और जैन धर्म का प्रवर्तक माना जाता है किन्तु हिन्दू धर्म में ऐसे किसी धर्म प्रवर्तक को खोज लेना कठिन है । वस्तुतः हिन्दूधर्म एक धर्म न होकर धर्म-समूह है । अतः न तो इसका कोई एक धर्मं प्रवर्तक माना जा सकता है और न कोई एक निश्चित दर्शन या धर्मशास्त्र ही है । हिन्दू धर्म में आज भी प्रकृति पूजा से लेकर वेदान्त की आध्यात्मिक ऊँचाई को स्पर्श करने वाले अनेक स्तर या रूप हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002127
Book TitleTirthankar Buddha aur Avtar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Gupta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1988
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
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