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________________ १४ : तीर्थकर, बुद्ध और अवतार : एक अध्ययन हैं, अपितु अपने भि संघ को इस महान कार्य के लिए प्रेरित करते हैं।' बौद्धधर्म के अनुसार यदि व्यक्ति बुद्ध द्वारा उपदिष्ट अष्टांग आर्यमार्ग का सम्यक प्रकार से पालन करता है तो वह जन्म, जरा और मृत्यु के चक्र से मुक्त होकर निर्वाण का लाभ कर सकता है। यद्यपि सामान्यतया बौद्ध धर्म को गौतम बद्ध के द्वारा उपदिष्ट और प्रसारित माना जाता है किन्तु जैनों के समान बौद्धों में भी यह अवधारणा पाई जाती है कि गौतम बुद्ध के पूर्व भी अनेक बुद्ध हो चुके हैं और उन्होंने धर्मचक्र का प्रवर्तन किया है। बौद्ध धर्म में बुद्ध, प्रत्येकबुद्ध और अहंत की अवधारणायें उपस्थित हैं। जो व्यक्ति बुद्ध द्वारा उपदिष्ट होकर निर्वाण का लाभ करते हैं वे अहंत और जो स्वयं बोधि को प्राप्त करते हैं, वे प्रत्येकबुद्ध कहे जाते हैं किन्तु अर्हत् और प्रत्येक बुद्ध के इन आदर्शों की अपेक्षा बुद्धत्व का आदर्श उच्च माना गया है क्योंकि बुद्ध न केवल अपनी दुःख-विमुक्ति की चिन्ता करते हैं अपितु वे संसार के सभी प्राणियों की दुःख विमुक्ति की चिन्ता करते हैं। महायान सम्प्रदाय तो यहां तक मानता है कि दूसरों को दुःख-विमुक्ति के लिए वे अपने परिनिर्वाण की भी चिन्ता नहीं करते। इस प्रकार बुद्ध न केवल आध्यात्मिक पूर्णता के प्रतीक हैं अपितु वे जन-जन के कल्याण करने वाले भी हैं। अपनो इसी विशेषता के कारण वे बौद्ध धर्म के आधार स्तम्भ हैं। १. 'चरथ भिक्खवे, चारिकं बहुजनहिताय बहुजनसुखाय लोकानुकम्पाय अत्थाय हिताय सुखाय देवमनुस्सान' -(अ) महावग्ग (१.१०.३२) पृ० ३२ -(ब) दीघनिकाय भाग-२ महापदानसुत्त (१.६.६५) पृ० ३७ तुलनीय बुद्धे परिनिव्वुडे चरे, गामगए नगरे व संजए । संतिमग्गं च बूहए, समयं गोयम । मा पमायए। -उत्तराध्ययन सूत्र १०॥३६ २. [अ] किं मे एकेन तिण्णेन पुरिसेन थामदस्सिना सब्ब तं पापुणित्वा सन्तारेस्सं सदेवक ।-जातकट्ठकथा-निदानकथा । बौद्धदर्शन और अन्य भारतीय दर्शन, भरत सिंह उपाध्याय, पृ० ६१० से उद्धृत । [ब] मुच्च मानेषु सत्त्वेषु ये ते प्रामोदयसागराः । तैरेव ननु पर्याप्तं मोक्षेणारसिकेन किम् ॥ -बोधिचर्यावतार ८/१०८; [स] भवेयमुपजीव्योऽहं यावत्सर्वे न निव॑ताः ।-बोधिचर्यावतार १/२०-२१ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002127
Book TitleTirthankar Buddha aur Avtar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Gupta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1988
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
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