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उपसंहार : २८७ में अलौकिक होते हुए भी शारीरिक धर्मों की दृष्टि से अन्य मनुष्यों के समान ही माने गये थे, किन्तु क्रमशः उनके व्यक्तित्व में अन्य अलौकिकताओं को प्रवेश मिलता गया । होनयान के बुद्ध का लक्ष्य अपने क्लेशों से मुक्ति, पाकर अर्हत् पद प्राप्त करना होता है, जबकि महायान का बुद्ध संसार के सभी प्राणियों के निर्वाण लाभ के बाद हो स्वयं का निर्वाण चाहता है । यद्यपि बौद्ध धर्म नित्य आत्मतत्त्व को मानने से इन्कार करता है, फिर भी उसमें चित्तधारा को मानकर बोधिसत्व और बुद्ध की सत्ता को स्वीकार किया गया है। उसमें चित्तधारा एक ऐसा योजकसूत्र है, जिसके चित्तक्षण एक दूसरे से पथक् होकर भी व्यक्तित्व की सर्जना कर देते हैं । बौद्धधर्म के अनुसार कोई भी व्यक्ति १० पारमिताओं की साधना के द्वारा बुद्धत्व को प्राप्त कर सकता है। निदानकथा के अनुसार निम्न .८ गुणों से युक्त व्यक्ति बुद्धत्व को प्राप्त हो सकता है-मनुष्य योनि, पुरुष लिंग, हेतु (बुद्ध-बोजत्व), शास्तादर्शन, प्रव्रज्या, गण-सम्प्राप्ति, अधिकार और छन्दता। महायान सम्प्रदाय में बद्धत्व की प्राप्ति का मूलाधार बोधिचित्त का उत्पाद है, क्योंकि बोधिचित्त का उदय होते ही प्राणी के अन्दर करुणा भाव की अनुभूति होने लगती है और यही करुणा भाव बुद्धचित्त की प्राप्ति का आवश्यक तत्त्व है। हीनयान और महायान के प्रारम्भिक ग्रन्थों में बद्ध के रूपकाय और धर्मकाय को चर्चा उपलब्ध है, किन्तु आगे चलकर बद्ध के रूपकाय को अनित्य और विनाशशील माना गया और धर्मकाय को स्वाभाविक और नित्य कहा गया । महायान में बुद्ध के रूपकाय को सम्भोगकाय और निर्माणकाय में विभाजित करके त्रिकायवाद की अवधारणा का विकास हुआ। जैनधर्म के समान बौद्ध धर्म में भी अहंत्, प्रत्येकबुद्ध और बुद्ध की अवधारणाएँ मिलती हैं। अर्हत् पथ का साधक बुद्ध के उपदेशों से प्रेरित होकर साधना के द्वारा दुःख-विमुक्ति और निर्वाणलाभ प्राप्त करता है। किन्तु बद्ध और बोधिसत्व का साध्य अपनी दुःख-विमुक्ति के साथ संसार के प्राणियों की दुःखमक्ति भी होती है। बौद्ध धर्म में भी प्रारम्भ में ७, फिर २४ बद्धों की अवधारणा प्रचलित हुई । बौद्ध धर्म में भक्ति की अवधारणा का विकास भागवत धर्म के प्रभाव का ही प्रतिफल है। यद्यपि प्रारम्भिक पालि ग्रन्थों में “सद्धा" का उल्लेख है फिर भी भक्ति-प्रधान नहीं है, किन्तु आगे चलकर जातकों तथा महायान ग्रन्थों में सर्वत्र भक्ति तत्त्व विद्यमान हैं। लोक-कल्याण ही बुद्धत्व का आदर्श है। बुद्ध ने स्वयं बोधि प्राप्त कर
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