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________________ उपसंहार भारतीय धर्मों में अवतार, बुद्ध और तीर्थंकर की अवधारणाएँ अपना महत्त्वपूर्ण स्थान रखती हैं । जहाँ हिन्दू धर्म में उपास्य के रूप में अवतार को स्थान मिला है, वहाँ बौद्ध धर्म एवं जैन धर्म में क्रमशः बुद्ध और तीर्थंकर को उपास्य माना गया है । ये तीनों अवधारणाएँ भारतीय धर्म दर्शन का एक महत्वपूर्ण अंग हैं। प्रत्येक धर्म के लिए दो बातें अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं। सर्वप्रथम तो उसमें एक धर्मप्रवर्तक होता है, जो धर्म-साधना तथा आचार की पद्धति निर्धारित करता है । इस प्रकार धर्म-प्रवर्तक उस धर्म के धार्मिक और सामाजिक नियमों और मर्यादाओं का संस्थापक होता है। उस धर्म के अनुयायियों के लिए उसके वचन प्रमाण होते हैं। पुनः सभी धर्मों में साधना का एक आदर्श होता है, इसे हम धार्मिक जीवन का साध्य भी कह सकते हैं। संसार के सभी धर्मों में यह दोनों तत्त्व अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं । वस्तुतः जो धर्म का प्रवर्तक होता है, वही धार्मिक साधना का आदर्श और साध्य भी होता है। ईश्वरवादी धर्मों में जहाँ एक ओर ईश्वर को अवतार के रूप में धर्म का प्रवर्तक कहा गया है, वहीं उसकी प्राप्ति को धार्मिक जीवन का साध्य भी मान लिया गया है। अनीश्वरवादी धर्मों में भी उसके प्रवर्तक को न केवल धर्म-प्रवर्तक के रूप में देखा गया, अपितु उसे धार्मिक साधना के उच्चतम आदर्श के रूप में भी स्वीकार किया गया और समग्र धर्म-साधना को उस आदर्श या ऊँचाई तक पहुँचने के लिए एक साधन माना गया। जैन और बौद्ध धर्मों में तीर्थकर और बुद्ध धर्म-प्रवर्तक के साथ-साथ धार्मिक साधना के आदर्श भी माने गये। इस प्रकार प्रत्येक धर्म का प्रवर्तक धार्मिक जीवन का साध्य भी बन गया। जैन धर्म में यह केन्द्रीय तत्व तीर्थंकर के रूप में, बौद्ध धर्म में बद्ध के रूप में, हिन्दू धर्म में अवतार के रूप में, इस्लाम में पैगम्बर के रूप में तथा ईसाई धर्म में ईश्वर-पुत्र के रूप में स्वीकार किया गया। जैन धर्म में तीर्थंकर धर्म संस्थापक के साथ-साथ धार्मिक साधना का आदर्श भी है। "शकस्तव" नामक प्राकृत स्तोत्र में तीर्थंकर को धर्म का आरम्भ करने वाला, धर्म का दाता, धर्म का उपदेशक, धर्म का नेता और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002127
Book TitleTirthankar Buddha aur Avtar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRameshchandra Gupta
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1988
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
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