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तीर्थंकर, बुद्ध और अवतार की अवधारणा : तुलनात्मक अध्ययन : २८३ के लिए पृथ्वी पर भेजे जाते हैं।' इस प्रकार प्रयोजन की दृष्टि से पैगम्बर और बोधिसत्व में समानता है। बौद्ध धर्म में जिस प्रकार प्रत्येक बुद्ध अपने हो निर्वाण की चिन्ता करते हैं, उसी प्रकार इस्लाम धर्म में शेख भी अपने साध्य की सिद्धि के बाद जनकल्याण के लिए कोई कार्य नहीं करते हैं। इस प्रकार बौद्ध धर्म और इस्लाम में क्रमशः प्रत्येक बद्ध और शेख "स्वान्तः सुखाय" की साधना करते हैं किन्तु बोधिसत्व और पैगम्बर सिद्ध या "इनसानुलामिल" होने के बाद भी जनकल्याण किया करते हैं।
जिस प्रकार बौद्ध धर्म में अतोत, अनागत और वर्तमान बुद्धों की स्थिति मानी गई है उसी प्रकार सूफो साधकों ने पैगम्बरों का त्रैकालिक अस्तित्व स्वीकार किया है। पुनः बुद्ध के समान हो सभी पैगम्बरों में धर्म सन्देश या धर्म शिक्षा की भावना दिखाई देती है । अतः बुद्ध और पैगम्बरों के प्रयोजनों में समानता है ।
यद्यपि बुद्ध और पैगम्बर की अवधारणा में कुछ अन्तर भी हैं-जहाँ बौद्ध धर्म अनीश्वरवादी है वहाँ इस्लाम ईश्वरवादी है अतः पैगम्बर ईश्वर के प्रतिनिधि हैं । बुद्ध अपनी स्वानुभूति के आधार पर प्राप्त सत्य का सन्देश देते हैं, जबकि पैगम्बर ईश्वर के सन्देशवाहक हैं । बुद्ध अपना सन्देश सुनाते हैं जबकि पैगम्बर ईश्वर का सन्देश सुनाते हैं। बुद्ध स्वयं की साधना के बल पर बुद्ध के रूप में उत्पन्न होते हैं, जबकि पैगम्वर ईश्वर (अल्लाह) के द्वारा उत्पन्न होते हैं । बुद्ध स्वयं सत्य का साक्षात्कार करते हैं, जबकि पैगम्बर को सत्य का दर्शन अल्लाह कराता है । अतः बद्ध और पैगम्बर को अवधारणा में किंचित् समानता और किंचित् भेद है।
१. दि अवारिफुल मारिफ, पृ० १३३ : उद्धृत-मध्यकालीन साहित्य में अवतार--
वाद, पृ० २६५ । २. सूफीमत साधना और साहित्य, पृ० ३५१ ।
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